सामन्ती संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव | राजपूत शासकों द्वारा अपने सगे-संबंधियों, सैनिक, असैनिक अधिकारियों को अपने राज्य क्षेत्र में से एकाधिक गाँव जागीर के रूप में देने की प्रथा सामन्तवाद कहलाती थी
सामन्ती संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव
राजपूत शासकों द्वारा अपने सगे-संबंधियों, सैनिक, असैनिक अधिकारियों को अपने राज्य क्षेत्र में से एकाधिक गाँव जागीर के रूप में देने की प्रथा सामन्तवाद कहलाती थी। जो शासन-प्रशासन के विकेन्द्रीकरण सिद्धान्त पर आधारित थी। जिसकी विद्यमानता ने राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है
अपने-अपने क्षेत्रों में कूप-मण्डूकता को बनाये रखना
सामन्त प्रायः रूढ़िवादी और परम्परावादी होते थे। परिवर्तित परिस्थितियों में इन्हें अपनी जागीर/राज्य की प्रगति पसन्द न थी। वे अपनी जागीर के लोगों को बाहरी लोगों के प्रभाव से बचाने के लिए न तो यातायात के साधनों का विकास करते थे और न अपनी जागीर से किसी को अपनी भूमि बेचकर अन्यत्र जाने देते थे। इस प्रकार लोगों को एक सीमित दायरे में संकुचित कर विकास को अवरुद्ध किया।
कृषि व्यवस्था का ह्रास
राजस्थान कृषि प्रधान प्रदेश रहा है एवं सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी हुई थी। इस समय ब्रिटिश इण्डिया में नई वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा कृषि का आधुनिकीकरण एवं वाणिज्यिकरण हुआ। बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ, कृषि फार्म, कल्टीवेटर आदि का विकास हुआ। लेकिन सामन्तों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया एवं कृषि को परम्परा बनाये रखने का ही प्रयास कर विकास को अवरुद्ध किया।
यह भी देखे :- मध्यकालीन जागीर के प्रकार
अत्यधिक आर्थिक शोषण एवं विद्रोह
बदले हुए समय के साथ-साथ सामन्तों को अपनी शानों-शौकत को पूरा करने के लिए जब धन की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती तो वे अपने किसानों पर अत्यधिक कर लगा देते व लेते थे। जिससे जगह-जगह कृषक विद्रोह हुए। इससे एक और राज्य की कृषि व्यवस्था चौपट हुई तो दूसरी ओर कृषि आधारित उद्योगों एवं शांति व्यवस्था के न होने पर व्यापार वाणिज्य की अवनति हुई।
व्यापार वाणिज्य एवं परिवहन संचार को हतोत्साहित करना
सामन्ती व्यवस्था ने कूप मण्डूकता बनाये रखने के लिए परिवहन-संचार का विकास हो नहीं होने दिया जिससे व्यापार वाणिज्य चौपट हो गया। व्यापारियों से अनेक प्रकार के सामन्ती कर वसूल किए जाते थे। कभी-कभी सामन्तों द्वारा व्यापारियों के काफिलों को लूटा भी जाता था। ऐसी में विकास की आशा नहीं की जा सकती।
व्यावसाय-उद्योग को प्रोत्साहन नहीं :
सामन्तों ने व्यावसायियों को नये उद्योग लगाने के लिए न तो कभी धन उपलब्ध कराया और न ही उन्हें प्रोत्साहन दिया गया। इसलिए यहाँ के व्यावसायियों को देश के अन्य भागों में पलायन करना पड़ा। वहाँ जाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा समस्त देशवासियों को मनवाया।
यह भी देखे :- सामंतों के विशेषाधिकार
फिजूलखर्ची को अत्यधिक बढ़ावा
सामन्तों का श्रेणीकरण होने से उनमें पारस्परिक द्वैष उत्पन्न हुआ। एक-दूसरे को हमेशा नीचा दिखाने में उलझे रहे थे। विवाह आदि के अवसर पर एक-दूसरे से अधिक खर्च करना अपनी शान समझते थे। जिसका सीधा भार कृषकों एवं व्यापारियों पर पड़ता था।
विलासितापूर्ण जीवनयापन
प्रारंभ में मुगल एवं बाद में ब्रिटिश संरक्षण प्राप्त होने पर शासक व सामन्त दोनों का ही जीवन विलासितापूर्ण हो गया, क्योंकि अब सैनिक सेवा की आवश्यकता नहीं रही। यह विलासिता ब्रिटिश काल में और बढ़ गई। सामन्तों की हवेलियों में नृत्य व संगीत की शंकार एवं शराब के प्यालों की टकराहट सुनायी देती थी। ऐसे में उनसे राज्य के विकास की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।
यह भी देखे :- सामन्तों का श्रेणीकरण
सामन्ती संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव FAQ
Ans – राजपूत शासकों द्वारा अपने सगे-संबंधियों, सैनिक, असैनिक अधिकारियों को अपने राज्य क्षेत्र में से एकाधिक गाँव जागीर के रूप में देने की प्रथा सामन्तवाद कहलाती थी.
Ans – ब्रिटिश इण्डिया में नई वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा कृषि का आधुनिकीकरण एवं वाणिज्यिकरण हुआ था.
आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.. यदि आपको हमारा यह आर्टिकल पसन्द आया तो इसे अपने मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के साथ शेयर करना मत भूलना ताकि वे भी इस आर्टिकल से संबंधित जानकारी को आसानी से समझ सके.
यह भी देखे :- जागीरदारी प्रथा (सामन्ती प्रथा)