बप्पा रावल : गुहिल राजवंश | बापा रावल का मूलनाम कालभोज था। बापा इसका प्रसिद्ध नाम था एवं ‘रावल’ इसका विरुद (उपाधि) था | ऐसी मान्यता है कि बापा रावल हारीत ऋषि की गायें चराता था।
बप्पा रावल
कर्नल टॉड के अनुसार ईडर के गुहिलवंशी राजा नागादित्य की हत्या के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने तीन वर्षीय पुत्र बप्पा को बड़नगरा जाति की कमलावती के वंशजों के पास ले गई। कमलावती के वंशज भीलों के आंतक के कारण बप्पा को नायक के जंगलों में ले गये। जहां बप्पा ब्राह्मणों की गायें चराने लगा।
बापा रावल का मूलनाम कालभोज था। बापा इसका प्रसिद्ध नाम था एवं ‘रावल’ इसका विरुद (उपाधि) था। डॉ. जी.एच.ओझा के अनुसार बापा इसका नाम न होकर कालभोज की उपाधि थी। ऐसी मान्यता है कि बापा रावल हारीत ऋषि की गायें चराता था। हारीत ऋषि की अनुकम्पा से ही बापा रावल ने मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया था।
बप्पा चित्तौड़ के शासक मान मोरी की सेवा में चला गया। इसी समय विदेशी मुगल सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। राजा मान ने अपने सामन्तों को विदेशी सेना का मुकाबला करने के लिए कहा किन्तु उन्होंने इंकार कर दिया। अंत में बप्पा रावल ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
यह भी देखे :- गुहिल राजवंश
उसने प्रतिहार नागभट्ट प्रथम, सांभर व अजमेर नरेश अजयराज, हाड़ौती के धवल, माड़ (जैसलमेर) के शासक देवराज भाटी एवं सिंध राजा दाहिर से मिलकर एक संयुक्त मोर्चा बनाया। बापा रावल के नेतृत्व में इस संयुक्त मोर्चे की सेना व अरब की खलीफा शक्ति से जबरदस्त टक्कर हुई। मुहम्मद बिन कासिम को भी पराजित किया।
बप्पा रावल का बढ़ता शासन
सिंध को मुक्त कराकर इस सेना ने ईरान, ईराक व खुरासान तक का प्रदेश जीत लिया। गजनी के शासक सलीम को हराकर बप्पा ने अपने भानजे को वहाँ के सिंहासन पर बैठाया। बप्पा ने सलीम की पुत्री के साथ विवाह किया और चित्तौड़ लौट आया।
‘फतुहुल बलदान’ नामक अरबी ग्रंथ का लेखक बताता है कि अब भारत में पुनः मूर्तिपूजा आरंभ हो गई। इस प्रकार बापा ने मेवाड़ की सीमा को ईरान, इराक व खुरासन तक बढ़ाया और प्रथमबार अरब खलीफाओं के आक्रमणों व धर्म परिवर्तन के प्रयासों पर अंकुश लगाया।

बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियाँ- ‘हिन्दू सूर्य’, ‘राजगुरु’ और ‘चक्कवै’ धारण की। इतिहासकार सौ. वी. वैद्य ने उसकी तुलना ‘चार्ल्स मार्टेल’ (मुगल सेनाओं को सर्वप्रथम पराजित करने वाला फ्रांसीसी सेनापति) के साथ करते हुए कहा है कि उसकी शौर्य की चट्टान के सामने अरब आक्रमण का ज्वार-भाटा टकराकर चूर-चूर हो गया।
बापा के समय को जानने के लिए कर्नल टॉड ने एक युक्ति काम में ली और बापा के लिए स. 770 राज्य पाने का समय माना जाता है। कविराजा श्यामलदास ने ‘वीर विनोद’ में बापा द्वारा मौर्यो से चित्तौड़ दुर्ग छीनने का समय 734 ई. बताया है। इस समय गुहिलों की राजधानी नागदा थी।
तत्कालीन संस्कृति
बापा के समय के तांबे एवं स्वर्ण धातु के सिक्के मिले हैं जिनमें स्वर्ण सिक्का 115 ग्रेन का है। इन पर समय की सबस कामधेनु, शिवलिंग, बछड़ा, नन्दी, दण्डवत करता हुआ पुरुष, त्रिशूल, चमर आदि का अंकन हुआ है।
दण्डधारी लकुलीश द्वारा प्रचारित द्वारा मेवाड़ शैव धर्म की एक शाखा जिसमें शिव पूजा एवं एकलिंग लिंगार्चन, दण्डधारण करना प्रमुख लक्षण था पाशुपत संप्रदाय कहलाया। मेवाड़ में इस मत का प्रचार-प्रसार हारीत ऋषि द्वारा किया गया।
यह भी देखे :- यशपाल : गुर्जर-प्रतिहार वंश
बापा रावल हारीत ऋषि का शिष्य एवं पाशुपत संप्रदाय का अनुयायी था। अतः उसने पाशुपत एकलिंगजी को अपना आराध्यदेव माना एवं कैलाशपुरी (उदयपुर) में एकलिंगजी का मंदिर बनवाया बापा ने एकलिंगजी को मेवाड़ का राजा घोषित किया तथा अपने आपको उसका दीवान। जब से लेकर आज तक मेवाड़ के महाराणा अपने आपको एकलिंगजी का दीवान ही मानते हैं।
बप्पा रावल की मृत्यु
एक मान्यता के अनुसार बापा रावल ने मध्य एशिया की विजय की और वहीं उसकी मृत्यु भी हुई। खुरासान में ‘बापा रावल की समाधि’ विषयक उक्ति भी प्रचलित है। इस मान्यता को मानने का हमारे पास कोई आधार नहीं है। क्योंकि बापा का देहान्त नागदा में हुआ था।
बापा का समाधि स्थल एकलिंगजी (कैलाशपुरी) से एक मील दूरी पर अभी भी मौजूद है जो ‘बापा रावल’ के नाम से प्रसिद्ध है। बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा।
यह भी देखे :- त्रिलोचनपाल : गुर्जर-प्रतिहार वंश
बप्पा रावल FAQ
Ans – बापा रावल का मूलनाम कालभोज था.
Ans – बापा रावल हारीत ऋषि की गायें चराता था.
Ans – बप्पा ने सलीम की पुत्री के साथ विवाह किया था.
Ans – बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियाँ- ‘हिन्दू सूर्य’, ‘राजगुरु’ और ‘चक्कवै’ धारण की.
Ans – बप्पा के समय गुहिलों की राजधानी नागदा थी.
Ans – बापा रावल हारीत ऋषि का शिष्य था.
Ans – बापा रावल पाशुपत संप्रदाय का अनुयायी था.
आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.. यदि आपको हमारा यह आर्टिकल पसन्द आया तो इसे अपने मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के साथ शेयर करना मत भूलना ताकि वे भी इस आर्टिकल से संबंधित जानकारी को आसानी से समझ सके.
यह भी देखे :- विजयपाल : गुर्जर-प्रतिहार वंश