बगरु का युद्ध | जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर ईश्वरीसिंह एवं माधोसिंह के मध्य पुनः 1748 ई. में बगरु का युद्ध हुआ। बगरु के युद्ध में ईश्वरीसिंह की पराजय हुई
बगरु का युद्ध
जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर ईश्वरीसिंह एवं माधोसिंह के मध्य पुनः 1748 ई. में बगरु का युद्ध हुआ। इससे पूर्व 1 मार्च, 1747 को राजमहल के युद्ध में माधोसिंह की पराजय हुई थी. इस बार पेशवा व होल्कर की सेनाएँ माधोसिंह के पक्ष में थी। अतः बगरु के युद्ध में ईश्वरीसिंह की पराजय हुई।
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इस युद्ध के बाद जयपुर राज्य का विभाजन हो गया। ईश्वरीसिंह को टोंक, येड़ा, मालपुरा सहित पाँच परगने माधोसिंह को देने पड़े एवं मराठों को युद्ध के हर्जाने के फलस्वरूप एक बड़ी धनराशि देने की माँग भी स्वीकारनी पड़ी। जब ईश्वरीसिंह मराठों को हर्जाना नहीं दे पाया तो मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर जयपुर आ धमका।
उनके डर से 1750 ई. में ईश्वरीसिंह को पारा पीकर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी पड़ी। सवाई जयसिंह के उत्तराधिकारी का यह दुःखद अंत था। वह राजपूताना का एकमात्र शासक था जिसने मराठों के दबाव से आत्महत्या की।
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बगरु का युद्ध FAQ
Ans – बगरु युद्ध 1748 ई. को हुआ था.
Ans – बगरु युद्ध इश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य हुआ था.
Ans – बगरु युद्ध जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर हुआ था.
Ans – बगरु युद्ध में माधोसिंह की विजय हुई थी.
Ans – ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या मराठों के डर से 1750 ई. को की थी.
Ans – इश्वरीसिंह राजपूताना का एकमात्र शासक था जिसने मराठों के दबाव से आत्महत्या की थी.
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