सारंगपुर का युद्ध | सारंगपुर का युद्ध 1437 ई. में मेवाड़ के महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ, जिसमें कुंभा की विजय हुई
सारंगपुर का युद्ध
सारंगपुर का युद्ध 1437 ई. में मेवाड़ के महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ, जिसमें कुंभा की विजय हुई। ये दोनों ही राज्य पड़ोसी थे और राज्य विस्तार के इच्छुक थे। मालवा के सुल्तान मेवाड़ के शत्रु महपा पँवार को आश्रय प्रदान किया।
कुंभा ने महपा पँवार को मेवाड़ को सौंपने के लिए पत्र लिखा। लेकिन महमूद ने खिलजी ने शरणागत को लौटाना स्वीकार नहीं किया। अतः दोनों के बीच युद्ध हुआ जिसमें महमूद खिलजी की पराजय हुई। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार युद्ध में मालवा का सुल्तान परास्त होकर बंदी बनाया गया। जिसे छः महीने तक कैद में रखने के बाद कुंभा ने पारितोषिक देकर स्वतंत्र कर दिया।
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अबुल फजल एवं नैणसी ने महमूद खिलजी को बंदी बनाकर मुक्त करने का उल्लेख किया है। इस विजय की स्मृति में कुंभा ने अपने आराध्यदेव विष्णु के निमित्त चित्तौड़गढ़ में विजय स्तम्भ (कीर्तिस्तम्भ) का निर्माण (1440-1448 ई.) करवाया। विजय स्तम्भ के स्थापत्यकार जैता, नापा और पूंजा थे तथा कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति का प्रशस्तिकार कवि अत्रि था। इस विजय स्तम्भ को ‘भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष’ कहा गया है।
दूसरी ओर महमूदशाह भी अपनी विजय की बात करता है। उसने भी इस विजय के उपलक्ष में माण्डू में सात मंजिला मीनार बनवाई। कर्नल टॉड ने महाराणा द्वारा महमूद को छोड़ देना तथा उसके राज्य को लौटा देना राजनीतिक अदूरदर्शिता बतायी है। डॉ. शर्मा के अनुसार महाराणा की यह नीति उसकी उदारता और स्वाभिमान तथा दूरदर्शिता की परिचायक है।
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सुल्तान महमूदशाह ने 1437 ई. की पहली पराजय का बदला लेने के लिए लगभग 6 वर्ष के बाद अर्थात् 1443 ई. में बड़ी तैयारी के साथ कुम्भलगढ़ पर आक्रमण कर दिया। कुंभलगढ़ में बाणमाता के मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़ों को कसाइयों को मांस तोलने के उपयोग में लाने के लिए दे दिया। नन्दी की मूर्ति का चूना पकाकर राजपूतों को पान में खिलवाया। यहाँ से माण्डू की फौजे चित्तौड़ लेने को चली, परन्तु इसको लेने में सफलता नहीं मिली।
तीन वर्ष के पश्चात् सन् 1446 में सुल्तान ने माण्डलगढ़ के किले को लेने के अभिप्राय से कूच किया पर किले को ले न सका। 1456 ई. में फिर महमूद ने माण्डलगढ़ पर आक्रमण किया जिसे राणा ने दस लाख टंका देकर टाल दिया। फरिश्ता के वर्णन से यह मालूम होता है कि महमूद ने लगभग पाँच बार मेवाड़ पर आक्रमण किये और प्रत्येक बार महाराणा ने सोना और टंका देकर उसे लौटा दिया।
डॉ. ओझा इन सभी में महमूद की पराजय बताते हैं। खुले मैदानों में या घाटियों में महाराणा ने भीलों की सहायता से’लुका-छिपी’ की लड़ाई लड़ी थी। लौटती हुई सेना पर छापा मारना और अपनी सीमा से सेना को भगा देना यह विधि ही महाराणा की सैन्य व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग थी।
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सारंगपुर का युद्ध FAQ
Ans – सारंगपुर का युद्ध 1437 ई. में हुआ था.
Ans – सारंगपुर का युद्ध मेवाड़ के महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ था.
Ans – सारंगपुर के युद्ध में महाराणा कुंभा की विजय हुई थी.
Ans – विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था.
Ans – विजय स्तम्भ का निर्माण सारंगपुर के युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में किया गया था.
Ans – भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष “विजय स्तम्भ” को कहा गया है.
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