तराइन के युद्ध | पृथ्वीराज के समय ही उत्तर-पश्चिमी भाग में गौर-वंश का शासन था, जिसका नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था। सन् 1186 से 1191 ई. तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ
तराइन के युद्ध
पृथ्वीराज के समय ही उत्तर-पश्चिमी भाग में गौर-वंश का शासन था, जिसका नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था। सन् 1186 से 1191 ई. तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 07 बार, पृथ्वीराज प्रबंध में 08 बार, पृथ्वीराज रासो में 21 बार, प्रबंध चिंतामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी के पराजित होने का उल्लेख है। ‘प्रबंध कोष’ का लेखक बीस बार गोरी का पृथ्वीराज द्वारा कैद कर मुक्त करना बताता है। अंततः 1191 ई. में मुहम्मद गौरी ने बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया।
वर्तमान करनाल (हरियाणा) के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें मुहम्मद गौरी की भारी पराजय हुई। पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली सामंत गोविन्दराज ने अपनी बछ के वार से मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया। घायल गौरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया। पृथ्वीराज ने तबरहिन्द पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसे बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया। परन्तु 1192 ई. में मुहम्मद गौरी पुनः तराइन के मैदान में आ धमका।
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पृथ्वीराज के साथ उसके बहनोई मेवाड़ शासक समरसिंह एवं दिल्ली के गवर्नर गोविंदराज भी थे। जो युद्ध में मारा गया। इस युद्ध में पृथ्वीराज की बुरी तरह हार हुई तथा भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई। पराजित पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बना लिया गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार बंदी पृथ्वीराज को गौरी अपने साथ गजनी ले गया जहां शब्द भेदी बाण के प्रदर्शन के समय पृथ्वीराज ने गौरी को मार डाला। जबकि समकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेर पर शासन किया था।
इसामी के कथन के पक्ष में एक सिक्के का भी संदर्भ दिया जाता है जिसके एक तरफ मुहम्मद बिन साम और दूसरी तरफ पृथ्वीराज नाम अंकित है। इस तरह अजमेर एवं दिल्ली पर मुहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो गया। तराइन के युद्ध बाद गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर का प्रशासक नियुक्त किया। के
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पृथ्वीराज की पराजय के कारण :
पृथ्वीराज के पास विशाल सेना के होते हुए भी उसके पराजित होने के अनेक कारण थे। मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार गौरी की सेना सुव्यवस्थित एवं पृथ्वीराज की सेना एकदम अव्यवस्थित थी जो उसकी हार का सबसे बड़ा कारण था राजपूत योद्धा मरना जानता था लेकिन युद्ध कला में निपुण नहीं था। सामन्ती सेना की वजह से केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव होना, अच्छे लड़ाका व अधिकारियों का प्रथम युद्ध में काम आना भी पराजय के बहुत बड़े कारण थे। सुबह-सुबह शौचादि के समय असावधान राजपूत सेना पर अचानक आक्रमण करना, अश्वपति, प्रतापसिंह जैसे सामन्तों का अपने स्वामी को हराने के भेद शत्रुओं को बताना भी हार का कारण बना। प्रथम युद्ध को अंतिम युद्ध मानकर उपेक्षा का आचरण करना, उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा का उपाय न करना, दिग्विजय नीति से अन्य राजपूत शासकों को अपना शत्रु बनाना एवं युद्ध के समय एक मोर्चा न बनाने के लिए पृथ्वीराज स्वयं जिम्मेदार था।
तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम :
यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक टर्निंग प्वाइंट था, जिसके परिणामस्वरूप भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई और हिन्दू सत्ता का अंत हुआ। आर.सी. मजूमदार के शब्दों में इस युद्ध से न केवल चौहानों की शक्ति का विनाश हुआ, अपितु पूरे हिन्दू धर्म का विनाश ला दिया। इसके बाद लूटपाट, तोड़फोड़, बलात् धर्म परिवर्तन, मंदिरों-मूर्तियों का विनाश आदि का घृणित प्रदर्शन हुआ जिससे हिन्दू कला और स्थापत्य का विनाश हुआ। इस्लाम का प्रचार-प्रसार, फारसी शैली का आगमन, मध्य एशिया से आर्थिक-सांस्कृतिक सम्बन्धों की स्थापना, वाणिज्य – व्यापार एवं नगरीकरण का प्रसार, नये वर्गों एवं शिल्पों का विकास आदि इसके दूरगामी परिणाम थे जिसे इरफान हबीब नई शहरी क्रान्ति की संज्ञा देते हैं।
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तराइन के युद्ध FAQ
Ans – पृथ्वीराज के समय गौर-वंश का नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था.
Ans – तराइन का युद्ध वर्तमान करनाल (हरियाणा) में हुआ था.
Ans – तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई. को हुआ था.
Ans – तराइन का द्वितीय युद्ध 1992 ई. में हुआ था.
Ans – तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय की विजय हुई थी.
Ans – तराइन के द्वितीय युद्ध में गौरी की विजय हुई थी.
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