राजमहल का युद्ध | राजमहल का युद्ध जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर सवाई जयसिंह के दोनों पुत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य लड़ा गया। इस युद्ध में ईश्वरीसिंह
राजमहल का युद्ध
राजमहल का युद्ध जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर सवाई जयसिंह के दोनों पुत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य लड़ा गया। युद्ध में मल्हार राव होल्कर और मुगल सम्राट ईश्वरीसिंह का समर्थन कर रहे थे, जबकि रानोजी सिंधिया, खाण्डेराव, कोटा का दुर्जनसाल एवं मेवाड़ के शासक माधोसिंह के पक्ष में थे।
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इन्होंने ईश्वरीसिंह के सामने तीन मांगे रखी (1) ईश्वरीसिंह टॉक, टोड़ा, मालपुरा एवं निवाई के परगने माधोसिंह को देगा। (2) उम्मेद सिंह हाड़ा को बूँदी का शासक स्वीकार किया जायेगा तथा मराठों की युद्ध हर्जाना देगा (3) तीन परगने नैनवा समिधि कारवार कोटा के राव दुर्जनसाल तथा प्रतापसिंह हाड़ा को दिया जायेगा।
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ईश्वरीसिंह ने इन मांगों को अस्वीकार कर दिया तथा अपनी सेना लेकर टोंक के पास राज महल पहुंच गया। जहां 1 मार्च, 1747 को राजमहल के युद्ध में माधोसिंह व उसके समर्थकों को परास्त किया। जिसके उपलक्ष्य में उन्होंने जयपुर में एक ऊँची मीनार ‘ईसरलाट’ (वर्तमान सरगासूली) का निर्माण कराया।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप मराठों का जयपुर ही नहीं वरन् राजस्थान की राजनीति में भी हस्तक्षेप बढ़ गया। वह धन लेकर किसी भी पक्ष का समर्थन करने लगे। औचित्य, अनौचित्य के प्रश्न का कोई महत्त्व नहीं रहा।
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राजमहल का युद्ध FAQ
Ans – राजमहल युद्ध जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर सवाई जयसिंह के दोनों पुत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य लड़ा गया था.
Ans – राजमहल के युद्ध इश्वरी सिंह के समर्थन में मल्हार राव होल्कर और मुगल सम्राट थे.
Ans – राजमहल के युद्ध में माधोसिंह के समर्थन में रानोजी सिंधिया, खाण्डेराव, कोटा का दुर्जनसाल एवं मेवाड़ के शासक थे.
Ans – राजमहल युद्ध 1 मार्च, 1747 ई. को हुआ था.
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