जैसलमेर का भाटी राजवंश | जैसलमेर के राजवंश की उत्पत्ति चन्द्रवंशीय यादवों की भाटी शाखा से मानी जाती है। ये स्वयं को श्रीकृष्ण के वंशज मानते हैं
जैसलमेर का भाटी राजवंश
जैसलमेर के राजवंश की उत्पत्ति चन्द्रवंशीय यादवों की भाटी शाखा से मानी जाती है। ये स्वयं को श्रीकृष्ण के वंशज मानते हैं। यादवों के एक वंशज भट्टी ने 285 ई. में भटनेर के किले का निर्माण कर वहां अपना राज्य स्थापित किया। इसी के वंशज भाटी कहलाने लगे। भाटी के वंशज मंगलराव ने तन्नौट में भाटी वंश की दूसरी राजधानी स्थापित की देवराज भाटी ने लोद्रवा को पंवार शासकों से छीनकर नई राजधानी बनाई। दंतकथाओं, ख्यातों एवं वंशावलियों के आधार पर भट्टि वंश के मुख्य प्रवर्तकों में रज और गज का नाम आता है। जो पंजाब में छठी शताब्दी में शासक थे। ये लोग वि.सं. 808 के लगभग राजस्थान में पंजाब से आकर बल्लमाड़ के मरुस्थलीय भाग में सुरक्षा की दृष्टि से आकर बस गये।
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हमें भाटियों के संबंध में लोद्रवा से शिलालेख 1157 ई. का मिला है जिसमें भाटी राजाओं के नाम और उनके संबंध में कुछ वर्णन मिलता है। भाटियों का व्यवस्थित इतिहास विजयराज (चूड़ला देवी से चूड़ प्राप्त होने के कारण) से आरंभ होता है। इसका समय 1165 ई. के आसपास का है। उसने ‘परम भट्टारक’ ‘महाराजाधिराज’ ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की। विजयराज के बाद भोज राजा बना। जैसल जो इसके बाद राजा बना उसने लोगवा को अरक्षित स्थान समझकर किसी दूसरी प्राकृतिक सुरक्षा की सुविधा के स्थान पर राजधानी बनायी और वह स्थान उसके नाम से जैसलमेर कहलाया।
जैसलमेर का भाटी राजवंश

12वीं शताब्दी तक इन्होंने तन्नौट, देरावल, लोद्रवा और जैसलमेर में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली। जैसल ने जैसलमेर दुर्ग का निर्माण करवाया। शालिवाहन ने 1187 ई. के आसपास इसे पूर्ण कराया। केहर के द्वारा तन्नौर किले के बनाये जाने की मान्यता है जो जैसलमेर से 75 मील उत्तर-पश्चिम में है। जैसलमेर दुर्ग अपने ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है।
जैसलमेर के साके :
जैसलमेर का पहला साका
उस समय हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना के साथ आक्रमण कर दुर्ग को भैर लिया। इसमें भाटी रावल मूलराज, कुवर रतनसिंह सहित अगणित योद्धा केसरिया धारण कर मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर की रस्म पूरी की।
जैसलमेर का दूसरा साका
फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ। रावल दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने केसरिया धारण कर शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और वीरांगनाओं ने जौहर अनुष्ठान की रस्म पूरी की।
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जैसलमेर का अर्द्ध साका
जैसलमेर का तीसरा साका अर्द्ध साका कहलाता है। यह अर्द्धसाका राव लूणकरण के समय 1550 ई. में सम्पन्न हुआ। शत्रु के अचानक आक्रमण कर देने से जौहर अनुष्ठान का समय नहीं मिल पाया। अतः राजपूत योद्धाओं ने अपने ही हाथों से दुर्ग की वीरांगनाओं को पहले तलवार के घाट उतारा तत्पश्चात् केसरिया धारण कर वीर गति पाई। इस प्रकार यहाँ केसरिया तो हुआ लेकिन जौहर संपन्न नहीं हो पाया।
यहां के परवर्ती शासक हरराज ने अकबर के नागौर दरबार में मुगल अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया। औरंगजेब के समय यहां का शासन महारावल अमरसिंह के हाथों में था जो ‘अमरकास’ नाला बनाकर सिंधु नदी का जल अपने राज्य में लाया। यहां के शासक मूलराज ने 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर राज्य की सुरक्षा का जिम्मा अंग्रेजों को दे दिया।
30 मार्च, 1949 ई. को जैसलमेर रियासत का राजस्थान में विलय हो गया। यहां के अंतिम शासक जवाहरसिंह के काल में राजा की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई, जिसमें यहां के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा को जेल में अमानवीय यातनाएं देकर 3 अप्रैल, 1946 को जलाकर मार डाला गया।
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जैसलमेर का भाटी राजवंश FAQ
Ans – जैसलमेर के राजवंश की उत्पत्ति चन्द्रवंशीय यादवों की भाटी शाखा से मानी जाती है.
Ans – जैसलमेर दुर्ग का निर्माण 1187 ई. को हुआ था.
Ans – जैसलमेर दुर्ग अपने ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है.
Ans – जैसलमेर का तीसरा साका अर्द्ध साका कहलाता है.
Ans – जैसलमेर का तीसरा साका 1550 ई. को हुआ था.
Ans – जैसलमेर रियासत का राजस्थान में विलय 30 मार्च, 1949 ई. को हुआ था.
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