राणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां | राणा कुंभा को ‘राजस्थान की स्थापत्य कला का जन्मदाता’ कहा जाता है। कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था
राणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां
राणा कुंभा को ‘राजस्थान की स्थापत्य कला का जन्मदाता’ कहा जाता है। कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था। कर्नल टॉड के अनुसार मेवाड़ के सुरक्षा प्रबन्ध के लिए बताया गया है कि उसने 32 किलों को बनवाया।
अपने राज्य की पश्चिमी सीमा और सिरोही के बीच के कई तंग रास्तों को सुरक्षित रखने के लिए नाकाबन्दी की और सिरोही के निकट बसन्ती दुर्ग बनवाया। मेरों के प्रभाव को बढ़ने से रोकने के लिए मचान दुर्गे का निर्माण करवाया। कोलन और बदनौर के निकट बैराट के दुर्गों की स्थापना की गयी। भोमट के क्षेत्र में भी अनेक दुर्ग बनाये गये जिससे भीलों की शक्ति पर राज्य का प्रभाव बना रहे।
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कीर्तिस्तम्भ के अनुसार केन्द्रीय शक्ति को पश्चिमी क्षेत्र में अधिक सशक्त बनाये रखने के लिए और सीमान्त भागों को सैनिक सहायता पहुँचाने के लिए आबू में 1509 वि.सं. में अचलगढ़ का दुर्ग बनवाया गया। यह दुर्ग परमारों के प्राचीन दुर्ग अवशेषों पर इस तरह से पुनर्निर्मित किया गया था कि उस समय की सामरिक व्यवस्था के लिए उपयोगी प्रमाणित हो सके।
कुम्भलगढ़ का दुर्ग’ कुम्भा की युद्ध कला और स्थापत्य रुचि का महान् चमत्कार कहा जा सकता है। “इसका शिल्पी मण्डन था। किले के अंदर एक लघु दुर्ग है जिसे ‘कटारगढ़’ के नाम से जाना जाना जाता है। इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि, “यह इतनी ऊँचाई पर स्थित है कि ऊपर देखने पर पगड़ी भी सिर से नीचे गिर जाती है” चित्तौड़गढ़ दुर्ग का पुननिर्माण करवाया तथा यहाँ एक ‘विजयस्तम्भ’ बनवाया, अनेक जलाशयों का निर्माण करवाया।

कुम्भाकालीन स्थापत्य में मन्दिरों के स्थापत्य का बड़ा महत्त्व है। ऐसे मन्दिरों में कुम्भस्वामी तथा शृंगारचौरी का मन्दिर (चित्तौड़), मीरा मन्दिर (एकलिंगजी), रणकपुर का मन्दिर अपने ढंग के अनूठे हैं। कुंभा के काल में रणकपुर के जैन मंदिरों का निर्माण 1439 ई. में एक जैन श्रेष्ठि धरनक ने करवाया था। रणकपुर के चौमुखा मंदिर (आदिनाथ) का निर्माण देपाक नामक शिल्पी के निर्देशन में हुआ।
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कुंभलगढ़ प्रशस्ति: कुंभलगढ़ प्रशस्ति की रचना 1460 ई. में पूर्ण हुई। कुंभलगढ़ प्रशस्ति का रचयिता कवि महेश ही था।
विजयस्तम्भ : मालवा विजय की स्मृति में राणा ने विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। विजयस्तम्भ के निर्माणकर्ता व सूत्रधार जैता और उसके पुत्र नापा, पोमा व पूंजा थे। यह 30 फीट चौड़ा, 122 फुट ऊँचा है तथा इसके निर्माण में 90 लाख रुपये खर्च हुए। यह स्तम्भ 9 मंजिला था। 9वीं मंजिल बिजली गिरने से टूट गई थी जिसे राणा स्वरूपसिंह ने पुनर्निर्मित करवाया। इसे ‘भारतीय मूर्ति कला का विश्वकोष’ कहा जाता है।
कीर्ति स्तम्भ : इसे 1460 ई. में बनवाया। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि थे लेकिन इनका निधन हो जाने के कारण इस प्रशस्ति को उनके पुत्र कवि महेश ने पूरा किया। इस पर तीसरी मंजिल पर अरबी में 9 बार अल्लाह शब्द लिखा हुआ है।
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राणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां FAQ
Ans – राणा कुंभा को ‘राजस्थान की स्थापत्य कला का जन्मदाता’ कहा जाता है.
Ans – कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था.
Ans – आबू में 1509 वि.सं. में अचलगढ़ का दुर्ग बनवाया गया था.
Ans – कुम्भलगढ़ दुर्ग शिल्पी मंडन था.
Ans – कुंभलगढ़ प्रशस्ति की रचना 1460 ई. में पूर्ण हुई थी.
Ans – कुंभलगढ़ प्रशस्ति का रचयिता कवि महेश था.
Ans – कीर्ति स्तम्भ का निर्माण 1460 ई. में किया गया था.
Ans – कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि थे.
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