मध्यकालीन राजस्थान के त्यौहार | राजस्थान के सामाजिक जीवन में लोकप्रिय त्यौहारों का मध्यकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस प्रदेश का सामाजिक जीवन धर्मभीरु जीवन था
मध्यकालीन राजस्थान के त्यौहार
राजस्थान के सामाजिक जीवन में लोकप्रिय त्यौहारों का मध्यकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गणगौर, रक्षाबन्धन, तीज, दशहरा, गणेश चतुर्थी, दीपावली, मकर सक्रांति, होली, वसन्त पंचमी आदि त्यौहार हिन्दू धर्म के अनुयायियों में लोकप्रिय उत्सव रहे हैं।
श्रावण शुक्ला तीज के दिन महादेव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां पानी में समर्पित की जाती हैं और उनकी गणगौर को घर लाया जाता है। यह उत्सव इतनी खुशी के साथ मनाया जाता था कि कर्नल टॉड ने अपने एनाल्स की प्रथम जिल्द के पृष्ठ 455 पर एक पूरा पैरा इस त्यौहार का सजीव वर्णन करने में लिख दिया।
रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसकी उत्पत्ति उस समय हुई थी जब मेवाड़ की रानी कर्णवती ने मुगल सम्राट हुमायूँ के पास राखी भेजकर बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता की कामना की थी। मध्यकाल में अकबर और जहांगीर के हिन्दू दरवारी उनकी कलाई पर राखी बाँधने लगे थे। परिवार में इस दिन प्रत्येक बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधकर इसे मनाती है।
भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तीज राजस्थान का एक विशेष आकर्षण है। यह पति-पत्नी के मिलन दिवस के रूप में मनाया जाता है। कतिपय राज्यों में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है इसीलिए कर्नल टॉड भी ‘एनाल्स’ लिखते समय उस सुखद स्मृति को विस्मृत नहीं कर सका था। आसोज शुक्ला दशमी के दिन दशहरे का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का त्यौहार भाद्रपद की चौच के दिन बुद्धि देवता गणेश के जन्म दिवस की स्मृति के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गणेश की प्रतिमा पर मोदक चढ़ाए जाते हैं।
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राजस्थान में बारहवीं शताब्दी और शायद उससे पहले से कार्तिक की अमावस्या के दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के दीयों में तेल डालकर रोशनी की जाती है। इस त्यौहार का सामाजिक जीवन में इसलिए विशेष महत्व है कि सेठ-साहूकारों के खातेवही इसके बाद ही बदले जाते है और कतिपय रजवाड़ों में दीपावली के बाद नया साल प्रारम्भ होता था। इसलिए इस त्यौहार के पश्चात् राजा-महाराजा दरबार आयोजित करते थे जिसमें कुरब के अनुसार लोगों को इनाम नजर करनी होती थी। साधारण लोग एक-दूसरे के यहां मिठाई का आदान-प्रदान करके इस त्यौहार को मनाते थे और आज भी मनाते हैं।
मकर सक्रांति का त्यौहार माघ मास में मनाया जाता है। इस दिन शासक ब्राह्मणों और विद्वानों को दान-दक्षिणा देते थे। साधारण व्यक्ति इस दिन गुड़ और तिल के लड्डू बनाकर ब्राह्मणों को देते हैं।
माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन साधारण व्यक्ति बन्सती रंग की वेशभूषा धारण करके इसे मनाते हैं। इस दिन वाद-विवाद होता है। भूतपूर्व कोटा और मेवाड़ राज्यों में बसन्त पंचमी का त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता था।
फाल्गुन मास में पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की स्मृति में होली का त्यौहार मनाया जाता है। वैसे यह मिलन का दिन होता है जब साल भर के मनमुटाव भूल कर लोग एक-दूसरे के साथ गले मिलते हैं। मधुर संबंध बनाए रखने के लिए एक-दूसरे पर रंग भी डालते हैं।
इनके अलावा अक्षय-तृतीया, रथ-यात्रा, राधाष्टमी, हिन्डोला और देवता-पूजन के त्यौहार भी मनाए जाते हैं। राजस्थान में रहने वाले जैन धर्म के अनुयायी पर्यूषण, रथयात्रा, जलयात्रा, दीपोत्सव के त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। इन सब में पर्यूषण विशेष महत्व के हैं। यह भाद्रपद मास में आते हैं तथा आठ दिन तक चलते हैं। इन दिनों श्रावक को जैन देवालयों में जाकर पूजा अर्चना करनी आवश्यक होती है। अन्तिम दिन इष्ट मित्रों से क्षमा याचना की जाती है और दूर बसे मित्रों संबंधियों को क्षमा-पत्र लिखे जाते हैं। सम्वत्सरी के रूप में पर्यूषण का विशेष महत्व है।
राजस्थान में रहने वाले मुसलमान मुहर्रम, ईद, शबेरात, इदुलफितर, ईद-उल-जुहा, बारावफात के त्यौहार मनात है। इन सब में मुहर्रम (ताजिया) का सामाजिक जीवन से निकट का संबंध है क्योंकि इस दिन हिन्दू और मुसलमान ताजिया देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
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त्यौहार का सांस्कृतिक समन्वय में विशेष योगदान रहा है। त्यौहारों के अवसर पर हिन्दू, जैन और मुसलमान एक साथ एकत्रित होते हैं। परिणामस्वरूप राजस्थान में भ्रातृत्व की भावना समय-समय पर ताजी होती रहती थी। राजपूत राजा सभी त्यौहारों में समान रूप से भाग लेते थे और यथासम्भव सहयोग भी करते थे त्यौहार मनोरंजन के साधन भी थे जिन्हें स्त्री और पुरुष घर की चारदीवारी से बाहर आकर सामूहिक रूप से मनाते थे। अन्त में, ये त्यौहार धर्म एवं संस्कृति के प्रतीक के रूप में भी मध्यकालीन राजस्थान के सामाजिक जीवन से विशेष रूप से सम्बद्ध हो गए।
सारांश: मध्यकालीन राजस्थान के सामाजिक जीवन के मूल तत्वों का विवेचन करने के पश्चात् कुछ तथ्य स्पष्ट होते है
(i) राजस्थान के सामाजिक जीवन में पूर्वमध्यकाल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक एक तारतम्य पाया जाता है।
(ii) मुस्लिम सम्पर्क के पश्चात् यहां के रहन-सहन, खान-पान और आचार-विचार प्रभावित हुए लेकिन यह प्रभाव केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित था।
(iii) राजस्थान में बहु-पत्नी प्रथा होते हुए भी समाज में स्त्रियों को सम्मानित स्थान प्राप्त था।
(iv) मध्यकालीन समाज विभिन्न जातियों, उपजातियों में विभाजित था लेकिन उस समय जाति की संकीर्ण भावना इस प्रदेश में उस अवस्था में नहीं थी जितनी अब आ गई है।
(v) इस प्रदेश का सामाजिक जीवन धर्मभीरु जीवन था। पग-पग पर धर्म और संस्कृति की रक्षा के उपक्रम मौजूद थे।
(vi) यहां के सामाजिक जीवन में त्यौहारों का विशेष महत्व था। जब ऊँच-नीच, धर्म-अधर्म की भावना को भुलाकर यहां के निवासी एक साथ एकत्रित होकर त्यौहारों में भाग लेते थे।
(vii) सामाजिक दृष्टि से भारत के अन्य भागों की तुलना में मध्ययुगीन राजस्थान पिछड़ा प्रदेश नहीं था। यहां के निवासियों को वे सब सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थी जो अन्य भागों के लोगों को थी। अन्तर केवल इतना था कि उन्हें वंश परम्परागत शासकों अथवा उनका अनुकरण करने वाले जागीरदारों के कड़े अनुशासन में रहना पड़ता था। कभी-कभी ये सामन्त उनका आर्थिक शोषण भी करते थे लेकिन फिर भी धर्म और संस्कृति के रक्षक के रूप में यहां का सामाजिक जीवन महत्वपूर्ण था।
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मध्यकालीन राजस्थान के त्यौहार FAQ
Ans – रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.
Ans – गणेश चतुर्थी का त्यौहार भाद्रपद की चौच के दिन मनाया जाता है.
Ans – दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है.
Ans – मकर सक्रांति का त्यौहार माघ मास में मनाया जाता है.
Ans – होली का त्यौहार फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है.
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