सामंतों के विशेषाधिकार | सामन्तों को अनेक अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त थे। जब कोई सामन्त दरबार में उपस्थित होता था. तो महाराणा खड़ा होकर उसका स्वागत करता था
सामंतों के विशेषाधिकार
मेवाड़ के सामन्तों को अनेक अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त थे। जब कोई सामन्त दरबार में उपस्थित होता था. तो महाराणा खड़ा होकर उसका स्वागत करता था। इस प्रक्रिया को ‘ताजीम’ कहते थे ताजीम के वक्त महाराणा का कन्धों पर हाथ रखना ‘बाह पसाव’ कहलाता था। महाराणा के दाईं तरफ की बैठक ‘बड़ी ओल’ एवं बाईं तरफ की बैठक ‘कुंवरों की ओल’ कहलाती थी। बड़ी ओल में उमराव एवं कुंवरों को ओल में युवराज व राजकुमार बैठते थे। राजस्थान के सामन्तशाही समाज में सामाजिक-धार्मिक तथा उत्सवपूर्ण अवसरों पर शासक को सामन्त द्वारा और सामन्त को उसके अनुसामन्त द्वारा ‘नेग’ (आर्थिक भेंट) प्रदान की जाती थी।
मारवाड़ दरबार द्वारा दी जाने वाली ताजीमें दो प्रकार की हैं। इकहरी (इकेवड़ी) दोहरी (दोवड़ी)। जिसे इकहरी ताजीम मिलती है, उसके महाराजा साहब के सामने हाजिर होते समय और जिसे दोहरी ताजीम मिलती है, उसके हाजिर होते और लौटते दोनों समय महाराजा साहब खड़े होकर उसका अभिवादन ग्रहण करते थे।
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हाथ का कुरब:
जिसको यह ताजीम मिलती थी, उसके बाँह पसाव वाले की तरह महाराजा साहब का घुटना क दामन छूने पर महाराजा साहब उसके कंधे पर हाथ लगा कर अपने हाथ को अपनी छाती तक ले जाते थे। ये ताजीमें भी इकहरी और दोहरी दोनों प्रकार की होती थी और उन्हीं के अनुसार महाराजा साहब खड़े होकर आदर करते।
सिरे का कुरब :
यह कुछ चुने हुए सरदारों को मिला हुआ था, जो दरबार के समय अन्य सरदारों से ऊपर बैठने थे। इनके भी दो प्रकार थे। दाई मिसल के मिरायत महाराजा साहब के दाई तरफ और बाई मिसल के बाई तरफ बैठते थे।

सोना :
मारवाड़ में जिस व्यक्ति को सोना पहनने का अधिकार मिलता है, वहाँ पैर में सोना पहन सकता है। पहल इस अधिकार के लिए दरबार की तरफ से पैर में पहनने का स्वर्ण का आभूषण मिलता था।
सिरोपाव :
प्रथम श्रेणी के सामन्त अपने शासक का रूक्का खास मिलने पर ही राजदरबार में उपस्थित होते थे। शासक उन्हें उचित आदर एवं सम्मान देता था तथा उनके लौटते वक्त शासक उन्हें ‘सिरोपाव’ (विशेष वस्त्राभूषण) विदा करता था। शासक के राज्याभिषेक, राजघराने में विवाह, युवराज के जन्म आदि अवसरों पर शासक से सिरोपाव प्राप्त करना उनका विशेषाधिकार था।
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विभिन्न सिरोपाव निम्नलिखित है—
(1) हाथी-सिरोपाव : जिसको यह सिरोपाव मिलता है उसे राज्य से कपड़ों वगैरा के सब मिलाकर नकद राशि दी जाती थी। विवाह के मौके पर (चेंगे और कमरंबद की कीमत मिलाकर) 849 रूपये मिलते हैं। अलावा महाराजा साहब के नजदीको भाई-बन्धुओं को, जो मारवाड़ में महाराज कहलाते हैं, विशेष कृपा औ मान प्रदर्शित करने के लिए 1,000 रुपये दिए जाते थे।
(II) पालकी-सरापाव : जिसको महाराजा साहब की तरफ से यह सिरोपाव मिलता है उसे 472 रुपए दिए थे। परन्तु विवाह के मौके पर इसकी रकम 553 रूपए कर दी जाती थी।
(iii) घोड़ा सिरोपाव : इसके लिए साधारण तौर पर 240 रूपये और विवाह के मौके पर 340 रूपये मिलते हैं।
(iv) सादा-सिरोपाव : इसके प्रथम दरजे में मामूली समय पर 140 रूपये और विवाह के समय 240 रूपये दिए जाते थे। परन्तु इसके दूसरे दर्जे में 100 रूपये और तीसरे दर्ज में 71 रूपये मिलते थे।
(v) कंठी-दुपट्टा सिरोपाव : इसकी प्रथम श्रेणी में 75 रूपये, द्वितीय श्रेणी में 60 रूपये और तृतीय दर्जे में 45
(vi) कड़ा, मोती, दुशाला और मदील (जरीदार पगड़ी)-सिरोपाव : इसमें प्रथम श्रेणी वाले को 121 रूपये, द्वितीय श्रेणी वाले को 85 रूपये और तृतीय श्रेणी वाले को 65 रूपये मिलते थे।
(vii) कड़ा और दुशाला-सिरोपाव इसमें 37 रूपए दिये जाते थे।
निष्कर्षत: राजस्थान की सामन्त व्यवस्था आपसी साझेदारी की थी और उसका रूप एक प्रकार से सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को लिए हुआ था। इस प्रथा में निजी रूप से भूमि से लाभ और राज्य की सैनिक सेवा सम्मिलित थी। शासक और सामन्त का संबंध पूर्णरूप से आश्रितों का न होकर समकक्ष आज्ञाकारी सहयोगियों का था।
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सामंतों के विशेषाधिकार FAQ
Ans – मारवाड़ दरबार द्वारा दी जाने वाली ताजीमें दो प्रकार की हैं.
Ans – राजस्थान की सामन्त व्यवस्था आपसी साझेदारी की थी.
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