गिरि सुमेल युद्ध | बलिदानों की श्रृंखला में गिरी सुमेल युद्ध को विश्व इतिहास में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त है। यह युद्ध 5 जनवरी 1544 ई. को हुआ था
गिरि सुमेल युद्ध
बीकानेर के मंत्री नागराज ने मालदेव के विरुद्ध शेरशाह को सहायता देने के लिए चलने की प्रार्थना की थी। इस तरह मेड़ता के स्वामी वीरम ने भी शेरशाह से सहायता चाही थी। शेरशाह ने एक चाल चली। नैणसी लिखता है कि मेड़ता के वीरम ने 20 हजार रुपये मालदेव के सेनानायक कृपा के पास भिजवाकर कहलवाया कि वह उसके लिए कम्बल खरीद ले।
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इसी तरह उसने जैता नामक उसी के सहयोगी के पास भी 20 हजार रुपये भेजकर यह कहलवाया कि वह उसके लिए सिरोही को तलवार खरीदे। इसी के साथ-साथ उसने मालदेव को यह सूचना भिजवायी कि उसके सेनानायकों ने शत्रु से घूस लेकर उसके साथ मिल जाने का निश्चय कर लिया है। जब इसकी जाँच करवायी तो जैता और कृपा के डेरे में रुपये मिले। इस घटना से मालदेव को धोखे का निश्चय हो गया और वह युद्ध स्थल को छोड़कर सुरक्षा के प्रबन्ध में लग गया।

रेऊ के अनुसार वीरम ने शेरशाह के जाली फरमानों को ढ़ालों में सी कर गुप्तचरों के द्वारा मालदेव के सरदारों को बिकवा दिया। मालदेव को भी यह सूचना भिजवायी कि युद्ध के उसके सरदार धोखा देंगे। यदि इसमें उनको कोई सन्देह हो तो उनकी दालों में छिपे हुए फरमानों को देखा जाये। जब इसकी जाँच की गयी तो फरमान ढालों में पाये गये। इससे मालदेव का अपने सरदारों पर से विश्वास उठ गया।
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किसी तरह जब यह पत्र मालदेव को मिला तो उसने युद्ध निरर्थक समझा। इस मतभेद में मालदेव ने लगभग आधे सैनिकों को अपने साथ ले लिया और लगभग आधी सेना जैता और कूंपा के साथ रहकर शेरशाह का युद्ध में मुकाबला करने को डटी रही। जैतारण के निकट गिरि-सुमेल नामक स्थान पर जनवरी, 1544 में दोनों की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ जिसमें शेरशाह सूरी की बड़ी कठिनाई से विजय हुई।
तब उसने कहा था कि “एक मुट्ठी भर बाजरी के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।” इस युद्ध में मालदेव के सबसे विश्वस्त वीर सेनानायक जैता एवं कूपा मारे गए थे। इसके बाद शेरशाह ने जोधपुर के दुर्ग पर आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया तथा वहाँ का प्रबन्ध खवास खाँ को संभला दिया।
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गिरि सुमेल युद्ध FAQ
Ans – गिरी सुमेल युद्ध 5 जनवरी 1544 ई. को हुआ था.
Ans – यह युद्ध राव मालदेव व शेरशाह के मध्य हुआ था.
Ans – गिरी सुमेल युद्ध में शेरशाह की विजय हुई थी.
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