सामन्तों का श्रेणीकरण | मुगल प्रभाव से राजपूत शासकों ने मुगल मनसबदारी प्रथा की भाँति यहाँ भी जागीरदारों के अनेक दर्जे बना दिए। मेवाड़ में सामन्तों की तीन श्रेणियों होती थी
सामन्तों का श्रेणीकरण
मुगल प्रभाव से राजपूत शासकों ने मुगल मनसबदारी प्रथा की भाँति यहाँ भी जागीरदारों के अनेक दर्जे बना दिए। जागीरदारों के दर्जे निश्चित करने से उनकी जागीर की आय, उनके पद और प्रतिष्ठा का निर्धारण होने लगा। मेवाड़ में सामन्तों की तीन श्रेणियों होती थी जिन्हें ‘उमराव’ कहा जाता था। जिसमें प्रथम श्रेणी के सामंत सोलह द्वितीय श्रेणी बत्तीस और तृतीय श्रेणी गोल के सामन्त कहलाये। मेवाड़ में यह व्यवस्था ‘अमरशाही रेख’ के नाम से जानी जाती है। मारवाड़ में ‘राजवीस’ (राजपरिवार के तीन पीढ़ियों तक के निकट संबंधी) जो रेख, हक्मनामा और चाकरी से मुक्त थे।
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सामन्तों का श्रेणीकरण
‘सरदार’ (राजपरिवार के अतिरिक्त), ‘मुत्सद्दी (अधिकारी वर्ग जो नागोर प्राप्त किए हुए हो) और ‘गनायत’ (अपनी शाखा के अतिरिक्त बाहर से आए हुए सरदार) नाम से विभाजित किए गए। जयपुर के महाराजा पृथ्वीसिंह ने अपने 12 पुत्रों के नाम से स्थाई जागीर चलाई जिन्हें ‘कोटड़ी’ कहा जाता था। जयपुर में सामन्तों का वर्गीकरण ‘बारह कोटड़ी’ में किया गया। इनमें प्रथम कोटड़ी कच्छवाहों की भी जो राजावत कहलाये। ये राजवंश के निकट संबंधी थे। उसके बाद नाथावत, खंगारोत, नरुका, बांकावत आदि की कोटडिया थी। जिसमें तेरहवीं कोटड़ी गुर्जरों की थी।

कोटा में सेवा के आधार पर वर्गीकरण हुआ। कोटा के जागीरदार प्रमुखतः दो श्रेणियों में विभाजित थे-देश के जागीरदार और दरबार के जागीरदार। देश के जागीरदार वे थे, जिन्हें राजकीय सेवा करने के बदले में जागीरें दो गई थी हाड़ौती में देशबी (देश में हो रहकर रक्षा करने वाले), हजूरथी (दरबार के साथ मुगल सेना में रहने वाले), राजवी (नरेश के निकट के कटुम्बी) अमीरी-उमराव (अन्य सरदार) में विभाजित हुए। कोटरा, वमूल्य सांगोद, आमली, खेरला, अन्ता तथा मुंडली के जागीरदार किशोरसिंघोत परिवार के थे। इनसे कुछ कम दर्ज में मोहनसिंघात घराने के सरदार थे। इन सभी को ‘आपजी’ कहा जाता था। इन्हीं घरानों से राज्य गद्दी के लिए गोद लेने की प्रथा थी।
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बीकानेर में सामन्तों की तीन श्रेणियाँ थी प्रथम श्रेणी में वंशानुगत सामन्त जो राव बीका के परिवार से थे, दूसरी श्रेणी में अन्य रक्त सम्बन्धी वंशानुगत एवं तृतीय श्रेणी में अन्य राजपूत थे, जिनमें बीकानेर में राठौड़ शासन स्थापित होने से पूर्व शासक परिवार के सदस्य थे एवं भाटी और सांखला वंश थे। जैसलमेर में भाटी रावल हरराज के शासनकाल में सामन्तों में श्रेणी व्यवस्था प्रारम्भ हुई, दो श्रेणियाँ थी एक डावी (बाई), दूसरी जीवणी (दाई)। मारवाड़ के प्रथम श्रेणी के सरदार सभी राठौड़ सरदार थे जो ‘सिरायत” कहलाते थे।
जो दरवार में महाराजा के दाई और बैठते थे उन सरदारों को “दाई मिसल के सिरायत” जिसमें जोधा के भाई के वंशज सम्मिलित थे तथा बाई तरफ बैठने वाले सरदारों को “बाई मिसल के सिरायत” कहा जाता था, जिनमें जोधा के वंशज सम्मिलित थे। 18वीं शताब्दी के आरम्भ में उत्तर-पूर्वी राजस्थान के सामंत काफ़ी निर्बल हो गये थे, परन्तु उनकी तुलना में राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भाग के सामंतों की स्थिति सबल थी। इनका मुख्य कारण यह था कि उत्तर-पूर्व में दक्षिण-पश्चिम की अपेक्षा मुगलों का प्रभाव अधिक रहा। इसके अतिरिक्त उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में राजपूतों की जनसंख्या भी अधिक थी। भरतपुर राज्य की स्थापना के समय से ही राजा की शक्ति सर्वोच्च रही। बदनसिंह के अनेक लड़के थे जिनमें तीस को जागीरों में गांव दिये जाने की जानकारी मिलती है। इन्हीं में से कालान्तर में भरतपुर राज्य के ‘सोलाह कोटरी’ के ठाकुर कहलाये।
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सामन्तों का श्रेणीकरण FAQ
Ans – जागीरदारों के दर्जे निश्चित करने से उनकी जागीर की आय, उनके पद और प्रतिष्ठा का निर्धारण होने लगा था.
Ans – मेवाड़ में सामन्तों की तीन श्रेणियों होती थी जिन्हें ‘उमराव’ कहा जाता था.
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