गुर्जर प्रतिहार राजवंश | Gurjara Pratihara Dynasty | मालवा का शासक नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था. नागभट्ट का यश अजेय अरबों कि सेना को हराने से चारो ओर फैल गया
गुर्जर प्रतिहार राजवंश | Gurjara Pratihara Dynasty
मालवा का शासक नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था. नागभट्ट 2 को राष्ट्रकूट सम्राट गोविन्द तृतीय ने हराया था.
गुर्जर-प्रतिहार वंश मध्यकालीन व प्राचीन दौर के संक्रमण काल में भारतीय उपमहाद्वीप में साम्राज्य स्थापित करने वाला एक वंश था. मध्य-8वीं सदी से 11वीं सदी के बीच इस वंश के शासकों ने मध्य-उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया।
प्रथम नागभट्ट इस वंश के संस्थापक थे, जिसके पूर्वजों ने पहले उज्जैन व बाद में कन्नौज को राजधानी बनाते हुए एक विशाल भूभाग पर शासन किया।
नागभट्ट द्वारा इस साम्राज्य की 725 ई. में स्थापना से पूर्व भी गुर्जर-प्रतिहारों द्वारा मारवाड़ तथा मंडोर आदि इलाकों में 6ठीं से 9वीं सदी के बीच सामंतों के रूप में शासन किया गया किंतु नागभट्ट को एक संगठित साम्राज्य के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय जाता है।
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नागभट्ट और परवर्ती शासकों ने उमय्यद ख़िलाफ़त के नेतृत्व में होने वाले अरब आक्रमणों का प्रबल प्रतिकार किया था. भारत में इस्लाम के विस्तार की गति के दौर में धीमी होने का श्रेय कुछ इतिहासवेता गुर्जर प्रतिहार वंश की सबलता को देते हैं. यह वंश नागभट्ट 2 के शासन के समय में उत्तर भारत की सबसे प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गया था.
यह साम्राज्य मिहिर भोज तथा उसके परवर्ती शासक महेन्द्रपाल प्रथम के शासन काल में अपने चरम पर पहुँचा तथा इस समय साम्राज्य की सीमाएँ पूर्व में आधुनिक बंगाल लेकर पश्चिम में सिंध से तक और हिमालय की तलहटी से नर्मदा पार दक्षिण तक फैली गई थी. यह विस्तार गुप्तकाल के समय के सर्वाधिक राज्य क्षेत्र से स्पर्धा करता हुआ सा था.
कला
शिल्पकला के लिए गुर्जर-प्रतिहार विशेषकर जाने जाते हैं. इनके शासन समय में खुले द्वारांगन वाले तथा उत्कीर्ण पटलों वाले मंदिरों का निर्माण हुआ. हमें खजुराहो के मंदिरों में इस शैली का चरम उत्कर्ष देखने को मिलता है जिन्हें आज यूनेस्को की विश्व विरासत में सम्मलित किया जा चुका है.
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प्रतिहार वंश
इस राजवंश का पहला राजा नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.) को माना गया है. भारत में अरबों का आक्रमण आठवीं शताब्दी में शुरू हो चुका था. मुल्तान तथा सिन्ध पर अरबों का अधिकार हो चुका था. फिर मालवा, जुर्ज तथा अवंती पर हमले के लिये सिंध के राज्यपाल जुनैद के नेतृत्व में सेना आगे बढ़ी, जहां जुर्ज पर अरबों का अधिकार हो गया। परन्तु नागभट्ट ने उन्हैं आगे अवंती पर खदैड़ दिया। नागभट्ट का यश अजेय अरबों कि सेना को हराने से चारो ओर फैल गया।
प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली व प्रतापी राजा मिहिर भोज था. मिहिर भोज ने अपनी राजधानी कन्नौज में बनाई थी. मिहिर भोज विष्णु भक्त था, इसने विष्णु के सम्मान में आदि वराह की उपाधि धारण की थी.
राजशेखर, प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल के दरबार में रहते थे. इस वंश का अंतिम राजा यशपाल था. दिल्ली नगर की स्थापना अनंगपाल ने 11 वी सदी के मध्य की गई थी.
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गुर्जर प्रतिहार राजवंश के शासक
- नागभट्ट प्रथम 730ई. से 756 ई.
- कक्कुस्थ और देवराज [756 ई. से 775 ई.]
- वत्सराज [775 ई. से 800 ई.]
- नागभट्ट द्वितीय [800 ई. से 833 ई.]
- रामभद्र [833 ई. से 836 ई.]
- मिहिर भोज [836 ई. से 885 ई.]
- महेन्द्रपाल प्रथम [885 ई. से 910 ई.]
- भोज द्वितीय [910 ई. से 913 ई.]
- महीपाल [913 ई. से 943 ई.]
- महेन्द्रपाल द्वितीय 943 से 948 ई.]
- देवपाल [948 ई. से 954 ई.]
- विनायकपाल [954 ई. से 955 ई.]
- महीपाल द्वितीय [955 से 956 ई.]
- विजयपाल [959ई. से 984 ई.]
- राजपाल [984 ई. से 1019 ई.]
- त्रिलोचनपाल [1019 ई. से 1024 ई.]
- यशपाल [1024 ई. से 1036 ई.]
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गुर्जर प्रतिहार राजवंश FAQ
Ans नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था.
Ans नागभट्ट प्रथम मालवा का शासक था.
Ans भारत में इस्लाम के विस्तार की गति के दौर में धीमी होने का श्रेय कुछ इतिहासवेता गुर्जर प्रतिहार वंश की सबलता को देते हैं.
Ans यह साम्राज्य मिहिर भोज तथा उसके परवर्ती शासक महेन्द्रपाल प्रथम के शासन काल में अपने चरम पर पहुँचा था.
Ans इस समय साम्राज्य की सीमाएँ पूर्व में आधुनिक बंगाल लेकर पश्चिम में सिंध से तक और हिमालय की तलहटी से नर्मदा पार दक्षिण तक फैली गई थी.
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