माधोसिंह हाड़ा | राव रतन ने अपने पुत्र माधोसिंह को 1625 ई. को कोटा राज्य सौंप दिया था. उसने 15 वर्ष की उम्र से ही अपने पिता के साथ मुगलों के अधीन रह कर युद्ध लड़ने शुरू कर दिए थे
माधोसिंह हाड़ा
जब जहाँगीर के पुत्र खुरंम को बंदी बनाया गया तो उसे बूंदी के राव रतनसिंह एवं उसके पुत्र माधोसिंह की देखरेख में रखा गया। माधोसिंह ने बंदी शाहजादे खुर्रम के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया तथा अंतिम समय में बंदीगृह से गुप्त रूप से मुक्त किया। इसे शहजादे खुर्रम ने बहुत बड़ा एहसान माना।
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जब खुर्रम मुगल सम्राट बना तो उसने ‘माधोसिंह हाड़ा’ के नाम से कोटा राज्य का फरमान जारी कर दिया। 1631 ई. में राव रतनसिंह की मृत्यु के बाद माधोसिंह को पृथक् रूप से कोटा का शासक स्वीकार कर लिया। माधोसिंह ने मुगल सेवा में अपना नाम कमाया।
बल्ख और बदख्शां में शहजादा मुरादबख्श के नेतृत्व में एक अभियान का आयोजन हुआ। माधोसिंह को भी 1646 ई. में इसमें सम्मिलित होने का आदेश हुआ। जब सम्राट ने मुराद के द्वारा माधोसिंह की वीरता और कुशलता की प्रशंसा सुनी तो उसके लिए चांदी के साज और आभूषणों से अलंकृत ‘बाद-रफ्तार’ नामक घोड़ा भेजा। कोटा लौटने पर 1648 ई. में लगभग 48 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी।
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माधोसिंह हाड़ा FAQ
Ans – राव रतन ने अपने पुत्र माधोसिंह को 1625 ई. को कोटा राज्य सौंप दिया था.
Ans – शाहजादे खुर्रम को अंतिम समय में बंदीगृह से गुप्त रूप से माधोसिंह ने मुक्त किया था.
Ans – जब खुर्रम मुगल सम्राट बना तो उसने ‘माधोसिंह हाड़ा’ के नाम से कोटा राज्य का फरमान जारी कर दिया.
Ans – माधोसिंह को पृथक् रूप से कोटा का शासक 1631 ई. में राव रतनसिंह की मृत्यु के बाद स्वीकार कर लिया गया था.
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