महाराजा सूरजमल | 1756 ई. में बदनसिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र सूरजमल भरतपुर का शासक बना। उसके राज्य में आगरा, मथुरा, मेरठ, अलीगढ़ आदि सम्मिलित थे
महाराजा सूरजमल
1756 ई. में बदनसिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र सूरजमल भरतपुर का शासक बना। उसके राज्य में आगरा, मथुरा, मेरठ, अलीगढ़ आदि सम्मिलित थे। बुद्धिमता व राजनैतिक कुशलता के कारण उसे ‘जाट जाति का प्लेटो’ (अफलातून) कहा जाता है। उसने अपनी रियासत को शान्ति एवं समृद्धि प्रदान की। उस समय की परिस्थितियों में वह हिन्दुस्तान का शक्तिशाली शासक बना रहा, जबकि अन्य राज्य तबाह हो गए। उसकी मृत्यु के समय उसकी सेनाओं में किलेबन्द सेना के अलावा 15000 घुड़सवार तथा 25000 पैदल सैनिक थे। उसने अपने पीछे 10 करोड़ का खजाना छोड़ा।
जयपुर की गद्दी पर ईश्वरीसिंह को बिठाने में कुँअर सूरजमल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। महाराजा सूरजमल के शौर्य, रणकौशल एवं सांस्कृतिक पुनरुद्धार के बारे में साहित्य में भी पर्याप्त तथ्यात्मक विवरण दिया गया है। पुरोहित मंगलसिंह ने ‘सुजान संवत विलास’ में सूरजमल के बारे में लिखा है
सूरजमल सो सुभगलघुः सिंह प्रताप कुमार।
अरि परितापी तेजसी, है हलधर अवतार।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के हिन्दी साहित्य के इतिहास (पृ. 250) के अनुसार मथुरा के बसंत के पुत्र ‘कवि सूदन’ (माथुर चौबे, भरतपुर के महाराज बदनसिंह के पुत्र ‘सुजानसिंह’ उपनाम ‘सूरजमल’ के यहां रहते थे। उन्हीं के पराक्रमपूर्ण चरित्र का वर्णन इन्होंने ‘सुजानचरित’ नामक प्रबंधकाव्य में किया है। ‘सुजानचरित’ बहुत बड़ा ग्रंथ है।
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सूरजमल की वीरता की जो घटनाएं कवि ने वर्णित की है ऐतिहासिक हैं। जैसे अहमदशाह बादशाह के सेनापति असदखां के फतहअली पर चढ़ाई करने पर सूरजमल का फतहअली के पक्ष में होकर असदखां का ससैन्य नाश करना, मेवाड़, मांडोगढ़ आदि जीतना, जयपुर की ओर होकर मरहठों को हटाना, बादशाही सेनापति सलावतखां बख्शी को परास्त करना में शाही वजीर सफदरजंग मंसूर की सेना से मिलकर बंगश पठानों पर चढ़ाई करना, बादशाह से लड़कर दिल्ली लूटना, इत्यादि। इन सब बातों के विचार से ‘सुजानचरित’ का ऐतिहासिक महत्व भी बहुत कुछ है।

1754 ई. में उसने मराठा नेता होल्कर के कुम्हेर पर आक्रमण को भी विफल किया था। मुगलों की जन विरोधी नीति को समाप्त करने के लिए उसने अफगान सरदार असद खाँ, मीर बख्शी सलावत खाँ तथा अहमद खाँ आदि का दमन किया। सूरजमल ने नजीबुद्दौला द्वारा अब्दाली के बल पर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की साजिश को विफल कर दिया। 1757 ई. में अब्दाली जब दिल्ली पहुँच गया और उसकी विशाल सेना ने ब्रज के तीनों तीथों को नष्ट करने हेतु आक्रमण किया तो उसे बचाने के लिये सूरजमल के सैनिकों ने बलिदान दिया। महाराजा के प्रतिरोध के बाद भी अब्दाली की सेना ने लूटपाट मचाई, लेकिन वह पुनः लौट गया।
अब्दाली को हराने, मुस्लिम शक्तियों को कुचलने और दिल्ली पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने के उद्देश्य से सदाशिव राव भाऊ सेना सहित बढ़ा, तभी स्वयं पेशवा बालाजी बाजीराव ने भाऊ को परामर्श दिया कि उत्तर भारत की प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे सूरजमल का आदर किया जाए व उसके परामर्श पर ध्यान दिया जाए। लेकिन भाऊ ने सूरजमल के युद्ध संबंधी सुझावों पर ध्यान नहीं दिया और पराजित हुआ। इस युद्ध में मराठों को अपूरणीय क्षति हुई। इनमें से लगभग 50 हजार मराठा अपने परिवार सहित सूरजमल के राज्य में पहुंचे।
उसने अब्दाली की चेतावनी की परवाह किए बिना मराठा सरदारों को सौंपने से मना कर दिया। इतिहासकारों ने उसके इस कार्य की प्रशंसा की है। महाराजा सूरजमल के समय जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। सूरजमल ने 12 जून, 1761 ई. को आगरे के किले पर अधिकार कर लिया। इस समय भरतपुर राज्य की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि उत्तर भारत के मुगल दरबार सहित अन्य राजनैतिक शक्तियाँ उसकी मदद मांगने को आतुर रहती थी। वह 1763 ई. में नजीब खाँ रोहिला के विरुद्ध हुए युद्ध में मारा गया।
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महाराजा सूरजमल का स्थापत्य :
लोहागढ़ दुर्ग
भरतपुर शहर में स्थित लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण 1733 ई. में राजा सूरजमल जाट ने करवाया। यह अपने निर्माण से लेकर भारत की स्वतन्त्रता तक निरन्तर अविजित रहा। इसका प्रमुख कारण किले के बाहर चारों और बनी 100 फीट चौड़ी और 60 फीट गहरी खाई है और इसके बाहर चारों और पक्की दीवार के साथ मिट्टी से बनी ऊँची दीवार है जिसे भेदकर कोई भी आक्रमणकारी इस पर विजय हासिल नहीं कर सका।
डीग के महल :
भरतपुर राज्य के डीग के जल महलों का निर्माण महाराजा सूरजमल जाट ने करवाया था। इसमें बने गोपाल भवन, हरिदेव भवन, नन्द भवन, केशव भवन तथा सावन-भादो भवन आदि महाराजा के ग्रीष्म ऋतु कालीन आवास गृह थे महाराजा सूरजमल युद्ध क्षेत्र से आने के बाद इनमें अपनी थकान दूर करते थे। ये महल अपनी विशालता, उत्कृष्ट शिल्प सौन्दर्य तथा इनके बीच स्थित मुगल शैली के सुन्दर उद्यान एवं फव्वारों के लिए प्रसिद्ध हैं।
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महाराजा सूरजमल FAQ
Ans – सूरजमल भरतपुर का शासक 1756 ई. में बना था.
Ans – बदनसिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र सूरजमल भरतपुर का शासक बना था.
Ans – ‘जाट जाति का प्लेटो’ (अफलातून) कहा महाराजा सूरजमल को जाता है.
Ans – भरतपुर शहर में स्थित लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण 1733 ई. में राजा सूरजमल जाट ने करवाया था.
Ans – भरतपुर राज्य के डीग के जल महलों का निर्माण महाराजा सूरजमल जाट ने करवाया था.
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