महाराजा सूरतसिंह | सूरत सिंह बीकानेर के राठौड़ वंश का शासक था. उसने 1818 ई. को ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली थी. वे बड़े वीर, नीतिवेता और न्यायप्रिय थे
महाराजा सूरतसिंह
सूरतसिंह के गद्दी पर बैठने पर अन्य दो भाई सुरतानसिंह और अजबसिंह ने पहले जयपुर से सहायता लेना चाहा लेकिन वहां से कोई सहायता नहीं मिली। अतः उन्होंने भटनेर के जाबताखां भट्टी और जोहियों की सहायता से बीकानेर पर आक्रमण किया। दोनों सेनाओं में ‘डबली का युद्ध’ हुआ जिसमें राठौड़ सेना की विजय हुई।
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इसी लड़ाई के मैदान में विजयस्तंभ स्वरूप ‘फतेहाबाद’ नाम का एक शहर सूरतसिंह ने बसाया। युद्ध के बाद भटनेर पर अधिकार कर लिया गया।
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हनुमानगढ़ :
महाराजा सूरतसिंह सिंध की सीमा तक अपना राज्य विस्तार करना चाहता था। इसी दौरान जाबताखां ने पुनः भटनेर पर अपना अधिकार कर लिया। महाराजा सूरतसिंह ने अमीरचंद के नेतृत्व में एक सेना भेजी जिसने वैशाख बदी वि.स. 1862 मंगलवार, के दिन भटनेर पर अधिकार कर लिया। मंगलवार का दिन होने के कारण भटनेर किले का नाम ‘हनुमानगढ़’ रखा गया।
सं. 1874 (ई.स. 1818) में काशीनाथ ओझा को अपने प्रतिनिधि स्वरूप अंग्रेज रेजीडेंट सर चार्ल्स मेटकॉफ के पास दिल्ली भेजा। ग्यारह शर्तों का अहदनामा होकर इस पर मि. चार्ल्स थियोफिलस मेटकाफ तथा ओझा काशीनाथ की मुहर और हस्ताक्षर हुए। 9 मार्च 1818 ई. (फाल्गुन सुदि 2 वि.सं. 1874) को दिल्ली में लिखा गया। दोनों के मध्य एक संधि पत्र हो जाने पर बीकानेर में एक सेना भेज दी।
महाराजा सूरतसिंह का राज्यकाल को अंग्रेजों के अभ्युत्थान का समय कहा जा सकता है। महाराजा सूरतसिंह बड़ा वीर, नीतिवेता और न्यायप्रिय था। वह अन्याय होता हुआ नहीं देख सकता था। जहां महाराजा में इतने गुण थे वहां एक दुर्गुण भी था। वह ‘काच का कच्चा’ था। महाराजा ने अपने राज्यकाल में सूरतगढ़ बनवाया था। सूरतसिंह ने वर्तमान ‘करणी माता’ मंदिर (देशनोक) का निर्माण करवाया।
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महाराजा सूरतसिंह FAQ
Ans – सूरत सिंह बीकानेर के राठौड़ वंश का शासक था.
Ans – मंगलवार का दिन होने के कारण भटनेर किले का नाम ‘हनुमानगढ़’ रखा गया.
Ans – ईस्ट इंडिया कंपनी व सूरत सिंह के मध्य संधि 1818 ई. में हुई थी.
Ans – सूरतगढ़ नामक नगर सूरत सिंह ने बसाया था.
Ans – वर्तमान ‘करणी माता’ मंदिर (देशनोक) का निर्माण सूरतसिंह ने करवाया था.
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