महाराणा स्वरूपसिंह | महाराणा सरदारसिंह के बाद उसका छोटा भाई स्वरूप सिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा था. इसके शासनकाल में कई समाज सुधार के कार्य किए गए थे
महाराणा स्वरूपसिंह
महाराणा सरदारसिंह के बाद उसका छोटा भाई स्वरूप सिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा था. महाराणा ने जाली सिक्कों से व्यापार को नुकसान होने पर नये ‘स्वरूपशाही’ सिक्कों का प्रचलन किया। इन सिक्कों पर एक ओर ‘चित्रकूट उदयपुर’ और दूसरी ओर ‘दोस्ती लंघन’ लिखा हुआ था।
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इनके समय में विजय स्तम्भ पर बिजली गिरने से वह क्षतिग्रस्त हो गया था, अतः महाराणा ने उसको पुनर्निर्मित करवाया।

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इन्होंने 1844 ई. में कन्यावध को निषेध कर दिया तथा 1853 ई. में डाकन प्रथा की समाप्ति कर दी। लेकिन पूर्ण समाप्ति महाराणा शंभूसिंह के काल में हुई। 15 अगस्त, 1861 को महाराणा ने सती प्रथा पर रोक लगाने का हुक्म जारी किया। महाराणा ने समाधि प्रथा पर भी रोक लगाई।
इनकी मृत्यु 1861 ई. में हुई। स्वरूपसिंह के साथ पासवान ऐंजाबाई सती हुई। यह मेवाड़ महाराणाओं के साथ सती होने की अंतिम घटना थी। स्वरूपसिंह के बाद शंभूसिंह (1861-1872 ई.) मेवाड़ का महाराणा बना। इनके समय अनेक सामाजिक सुधार किए गए। इन्होंने सती प्रथा को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया।
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महाराणा स्वरूपसिंह FAQ
Ans – महाराणा सरदारसिंह के बाद उसका छोटा भाई स्वरूप सिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा था.
Ans – 1844 ई. में कन्यावध को निषेध कर दिया गया था.
Ans – कन्यावध को राणा स्वरूप सिंह के द्वारा निषेध कर दिया गया था.
Ans – 1853 ई. में डाकन प्रथा की समाप्ति कर दी गई थी.
Ans – 15 अगस्त, 1861 को महाराणा ने सती प्रथा पर रोक लगाने का हुक्म जारी किया था.
Ans – राणा स्वरूप सिंह की मृत्यु 1861 ई. को हुई थी.
Ans – स्वरूपसिंह के बाद शंभूसिंह (1861-1872 ई.) मेवाड़ का राणा बना.
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