महेंद्रपाल प्रथम : गुर्जर-प्रतिहार वंश | मिहिर भोज के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम शासक बना था. तत्कालीन अभिलेखन में उसे महिन्द्रपाल, महीशपाल तथा महेंद्रायुद्ध नामों से पुकारा गया है. इसकी माता का नाम चन्द्रभट्टारिका था
महेंद्रपाल प्रथम : गुर्जर-प्रतिहार वंश
मिहिर भोज के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम शासक बना था. तत्कालीन अभिलेख में उसे महिन्द्रपाल, महीशपाल तथा महेंद्रायुद्ध नामों से पुकारा गया है. इसकी माता का नाम चन्द्रभट्टारिका था. इसने 885 ई. से 910 ई. तक शासन किया था.
इसने “परमभट्टारक परमभागवत महाराजाधिराज परमेश्वर” की उपाधि धारण की थी. इसके समय में कन्नौज हिन्दू सभ्यता व संस्कृति का महान केंद्र बन या था. शक्ति व सौन्दर्य में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई रज्य नहीं रहा था. यह भी बड़ा महत्वकांक्षी ससक सिद्ध हुआ था.
पालों से युद्ध :- महेन्द्रपाल के शासनकाल में भी प्रतिहार–पाल संघर्ष चलता रहा था. इस संघर्ष में निश्चित रूप से महेंद्रपाल की विजय हुई थी. युद्ध में विजय के परिणामस्वरूप मगध व बिहार के कुछ हिस्से इसके हाथ आ गए थे. मगध में महेंद्रपाल के अभिलेख रामगया अभिलेख, गुनेरिया अभिलेख, इटोरी अभिलेख प्राप्त हुए है. इसी प्रकार बंगाल में महेन्द्रपाल का पहाड़पुर अभिलेख प्राप्त हुआ है.
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पश्चिमी भारत : महेंद्रपाल के दो अभिलेख काठियावाड़ के ऊना नामक स्थान पर मिले है. इनमें कहा गया है की वहां के शासक बलवर्मा व उसका पुत्र अवनिवर्मा “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर महेंद्रयुध” के सामंत थे. इन दोनों सामंतों ने ऊना अभिलेख के अनुसार एक सूर्य मंदिर को दो गाँव दान में दिए थे. महेंद्रयुध का समीकरण महेन्द्रपाल प्रथम से किया गया है.
साम्राज्य विस्तार : इसने न केवल अपने पैतृक साम्राज्य की रक्षा की वरन कम से कम कुछ वर्षों के लिए बंगाल व बिहार के अधिकांश प्रदेशों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. इसका साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड व पश्चिम में हरियाणा से लेकर कम से कम कुछ समय बंगाल व बिहार तक था. उसके साम्राज्य में काठियावाड़ भी सम्मलित था. सिमडोनी अभिलेख से प्रकट होता है की ग्वालियर का प्रदेश भी उसके साम्राज्य में था.
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महेन्द्रपाल भी अपने पिता मिहिर भोज की भांति नाई भगवती देवी का भक्त था. महेन्द्रपाल के तीनों पुत्र महिपाल, भोज व विनायकपाल के नामों का पता चला है. भोज की माता का नाम देहनागादेवी व विनायकपाल की माता का नाम महीदेवी मिला है.

महेन्द्रपाल के शासन की अंतिम तिथि 910 ई. है. ऐसा प्रतीत होता है की इसके दो पुत्र थे : भोज द्वितीय व महिपाल प्रथम. इनमें से भोज द्वितीय का उल्लेख एशियाटिक सोसायटी ताम्रपत्र में हुआ है. वहां इसे महेन्द्रपाल व देवनागादेवी का पुत्र बताया गया है. इसी प्रकार असनी अभिलेख महिपाल का उल्लेख करता है. उसमें इसे महेन्द्रपाल व महीदेवी का पुत्र बताया गया है. इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है की यह दोनों राजकुमार सौतेले भाई थे. भोज द्वितीय ने संभवतः 910 ई. से 913 ई. तक राज किया था, क्योंकि महिपाल प्रथम के शासन की प्रथम तिथि 914 ई. सेव प्रारंभ होती है.
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महेंद्रपाल प्रथम FAQ
Ans मिहिर भोज के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम शासक बना था.
Ans तत्कालीन अभिलेख में महेन्द्रपाल को महिन्द्रपाल, महीशपाल तथा महेंद्रायुद्ध नामों से पुकारा गया है.
Ans महिन्द्रपाल की माता का नाम चन्द्रभट्टारिका था.
Ans महिन्द्रपाल ने 885 ई. से 910 ई. तक शासन किया था.
Ans महिन्द्रपाल ने परमभट्टारक परमभागवत महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी.
Ans मगध में महेंद्रपाल के अभिलेख रामगया अभिलेख, गुनेरिया अभिलेख, इटोरी अभिलेख प्राप्त हुए है.
Ans बंगाल में महेन्द्रपाल का पहाड़पुर अभिलेख प्राप्त हुआ है.
Ans महेंद्रपाल के दो अभिलेख काठियावाड़ के ऊना नामक स्थान पर मिले है.
Ans महेंद्रयुध का समीकरण महेन्द्रपाल प्रथम से किया गया है.
Ans महेन्द्रपाल का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड व पश्चिम में हरियाणा से लेकर कम से कम कुछ समय बंगाल व बिहार तक था.
Ans सिमडोनी अभिलेख से प्रकट होता है की ग्वालियर का प्रदेश भी महेन्द्रपाल के साम्राज्य में था.
Ans महेन्द्रपाल के तीनों पुत्र महिपाल, भोज व विनायकपाल के नामों का पता चला है.
Ans भोज की माता का नाम देहनागादेवी व विनायकपाल की माता का नाम महीदेवी मिला है.
Ans महेन्द्रपाल के शासन की अंतिम तिथि 910 ई. है.
Ans असनी अभिलेख महिपाल का उल्लेख करता है.
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