मध्यकालीन सिंचाई के मुख्य यंत्र | कुओं और अन्य स्थानों से पानी प्राप्त करने के लिए ‘रेंट’, ‘पावटी’ या ‘रिया’, ‘चड्स’, ‘ढीकळी’ , इडोणी या झांपल्या और कुतुम्बा का उपयोग होता है
मध्यकालीन सिंचाई के मुख्य यंत्र
कुओं और अन्य स्थानों से पानी प्राप्त करने के लिए ‘रेंट’, ‘पावटी’ या ‘रिया’, ‘चड्स’, ‘ढीकळी’ , इडोणी या झांपल्या और कुतुम्बा का उपयोग होता है। कुओं, बावड़ियों और डोरियों आदि से खेतों की सिंचाई के लिए खालड़े का बना एक बड़ा पात्र, जिसके पैदे में हाथी की सूण्ड की तरह एक सूंड लगी होती है, चड्स, चर्ड या छर्ड कहा जाता है।
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चड़स बनाने का काम ‘रेगर’ करते थे। उदयपुर के पास इन्हें ‘मैंतर’ (महतर) कहते हैं। रेगरों का खाल और चमड़ा पकाने का स्थान कारखाना या ‘आडाँ’ कहलाता है। वेदों में प्राप्त अरगराट शब्द का अर्थ ‘अरघट जलयन्त्र’ हो सकता है। ऐसा कुआँ जिस पर रहँट से सिंचाई होती है ‘आट’ कहा जाता है। रहँट का उपयोग केवल पर्वतीय स्थानों में होता है। जहाँ लम्बा फेरा बनाने के लिए स्थान की कमी हो।
छोटे खेतों की सिंचाई और ढूंढ में भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए कुएँ पर एक धूणी के सिर व बलींडी लगाकर उसके एक सिरे पर रस्सी में डोल बाँधकर सहायता ली जाती थी। बलींडी के ऊपर नीचे आने से पानी से भर कर चमड़े का बना एक ढ़ोल जिसे ‘चड़सी’ कहते हैं, ऊपर आता है। कुएँ पर लगा हुआ लकड़ी का यह तुला यन्त्र ढिकळी कहलाता था।
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मध्यकालीन सिंचाई के मुख्य यंत्र FAQ
Ans – कुओं और अन्य स्थानों से पानी प्राप्त करने के लिए ‘रेंट’, ‘पावटी’ या ‘रिया’, ‘चड्स’, ‘ढीकळी’ , इडोणी या झांपल्या और कुतुम्बा का उपयोग होता था.
Ans – चड़स बनाने का काम ‘रेगर’ करते थे.
Ans – वेदों में प्राप्त अरगराट शब्द का अर्थ ‘अरघट जलयन्त्र’ हो सकता है.
Ans – रहँट का उपयोग केवल पर्वतीय स्थानों में होता है.
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