मध्यकालीन लगान निर्धारण प्रणाली | भू-राजस्व को लगान, भोग, हॉसिल और भोज आदि कहा जाता था। मध्यकाल में कर निर्धारण की अन्य प्रणालियों में सबसे प्राचीन और सामान्य प्रचलित प्रणाली-बंटाई अथवा गल्ला बख्शी थी
मध्यकालीन लगान निर्धारण प्रणाली
भू-राजस्व को लगान, भोग, हॉसिल और भोज आदि कहा जाता था। मध्यकाल में कर निर्धारण की अन्य प्रणालियों में सबसे प्राचीन और सामान्य प्रचलित प्रणाली-बंटाई अथवा गल्ला बख्शी थी। इसे ‘भाओली’ भी कहा जाता था। इस प्रणाली के अन्तर्गत फसल का किसान और राज्य के बीच एक निश्चित अनुपात में बंटवारा किया जाता था। इसमें प्रायः उपज के 1/3 भाग पर राज्य का अधिकार होता था। इस प्रणाली में राजस्व का निर्धारण निम्न तरह से होता था
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- खेत बंटाई: इसमें फसल तैयार होते ही खेत बांट लिया जाता था।
- लंक बंटाई: इसमें फसल काटकर खलिहान में लाई जाती थी तब बंटवारा
- रास बंटाई: अनाज तैयार होने के बाद बंटवारा होता था।
- कूंत (कनकूत) : राजस्व निर्धारण की इस प्रणाली के अन्तर्गत कुल उपज के ढेर या खेत पर खड़ी फसल का स्थूल/मोटा अनुमान लगाकर भाग निर्धारित किया जाता था।
- जब्ती : नकदी फसलों (गन्ना, कपास, अफीम, नील) पर प्रति बीघा की दर से राजस्व का निर्धारण तथा वसूली को ‘जी’ कहते थे।
- बोघोड़ी : राजस्व का निर्धारण प्रति बीघा भूमि की उर्वरा एवं पैदावार के आधार पर किया जाता था।

लाटा
यह भू-राजस्व वसूली के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रणाली थी, जिसे घंटाई भी कहते थे। इस प्रणाली के अन्तर्गत जब फसल पककर तैयार हो जाती और खलिहान में साफ कर सो जाती थी, तब राज्य का हिस्सा सुनिश्चित किया जाता था। एकत्रित उत्पादन को तोलना अथवा डोरी द्वारा नाप लेना और कहीं-कहीं अनुमान से हो स्वामी का हिस्सा निश्चित कर दिया जाता था बाई के समय राजकीय पदाधिकारी, हवलदार, चौधरी, पटवारी, कामगार और कृषक उपस्थित रहते थे।
मुकाता
राज्य द्वारा एकमुश्त राजस्व निश्चित कर दिया जाता था कि प्रत्येक खेत पर नकदी या जिन्स (अनाज) के रूप में कितना कर देना है। इसे ‘मुकाता’ कहा जाता था।
लटारा
राजस्व निर्धारण की लाटा पद्धति के अन्तर्गत जागीरदार किसान की फसल की कूत करने के लिए जिन व्यक्तियों को भेजता था उन्हें ‘ला’ कहा जाता था।
डोरी
डोरी से नापे गए बीघे का हिस्सा निर्धारित करके मालगुजारी वसूल की जाती थी। जयपुर में डोरी को जगह बांस का उपयोग किया जाता था।
घूघरी
जब प्रति कुआं अथवा खेत को पैदावार की मात्रा निश्चित कर राजस्व वसूल किया जाता था, उसे ‘घूघरी’ कहते थे।
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हल प्रणाली
राजस्थान में कहाँ-कहीं भू-राजस्व वसूलने के लिए हल प्रणाली का प्रचलन था। इस पद्धति के अन्तर्गत एक हल से जोती गई भूमि पर कर का निर्धारण किया जाता था। यह माना जाता था कि एक हल से 15 से 30 बीघा तक भूमि जोती जा सकती थी। हल पर लगी कर की दर सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न थी। बीकानेर में बैल से जोते गए डल पर तीन रुपए और उौट से जोते गए हल पर पांच रुपए राजस्व वसूल किया जाता था।
भेज अथवा नकदी
भू-राजस्व के निर्धारण की इस पद्धति में नकदी में राजस्व वसूली की जाती थी। इस पद्धति को पूर्वी राजस्थान में ‘भेज’ नाम से जाना जाता था। भेज वाणिज्यिक फसलों पथा गन्ना, अफीम, तिलहन, जूट, तम्बाकू, कपास एवं नील पर मुख्य रूप से वसूल किया जाता था। इसकी दर दो रुपए से दस रुपए प्रति बीघा होती थी।
भीत की भाछ
बीकानेर राज्य में भीत की भाछ पद्धति से भी हासल एकत्रित किया जाता था। इस प्रणाली के अनुसार गांव के घरों या गुवाड़ियों की गिनती करके निर्धारित दर से हासल वसूल कर लिया जाता था।
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मध्यकालीन लगान निर्धारण प्रणाली FAQ
Ans – मध्यकाल में भू-राजस्व को लगान, भोग, हॉसिल और भोज आदि कहा जाता था.
Ans – मध्यकाल में कर निर्धारण की अन्य प्रणालियों में सबसे प्राचीन और सामान्य प्रचलित प्रणाली-बंटाई अथवा गल्ला बख्शी थी.
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