मध्यकालीन गांव का प्रशासन | गाँव शासन की सबसे छोटी इकाई थी। उस समय गांव प्रशासनिक रूप से ‘मौजे’ कहलाते थे। मौजे दो प्रकार के होते थे ‘असली’ (पहले के) व ‘दाखिली’ (नए बसे मौजे)
मध्यकालीन गांव का प्रशासन
गाँव शासन की सबसे छोटी इकाई थी। उस समय गांव प्रशासनिक रूप से ‘मौजे’ कहलाते थे। मौजे दो प्रकार के होते थे ‘असली’ (पहले के) व ‘दाखिली’ (नए बसे मौजे)। पूर्व मध्यकालीन युग में ग्रामिक गाँव या ग्राम-समूह का ‘मुखिया’ होता था। धीरे-धीरे ‘ग्रामिक’ को ‘पटवारी’ की संज्ञा दी गयी, क्योंकि वह भूमि सम्बन्धी पत्रों को रखता था और उनके अनुसार राजस्व को इकट्ठा करता था। इनके अन्य सहयोगी भी होते थे जिन्हें ‘कनवारी’ (खेत के रक्षक), ‘दफेदार’ (राज्य का लेखा-जोखा रखने वाला), ‘तलवाटी’ (जो उपज को तौलता था), ‘शहनाह’ (प्रबन्धक), ‘चौकीदार’ आदि कहते थे।
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मेवाद में जिस गांव में राजपूत अधिक होते थे, वहां उसे ‘गाड़ा’ जहां भील व मोणों होती, ‘गमेती’ और जिस गांव में महाजनों को बस्ती रहती थी, वहां उसे ‘पटवारी’ कहा जाता था। अधिक आचार्य गाँवों की स्थानीय व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत होती थी जिसमें गाँव का मुखिया तथा गाँव के सयाने व्यक्ति रहते थे। ये लोग मिलकर न्याय करना, झगड़े निपटाना, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर विचार करना आदि कार्यों को सम्पादित करते थे। इन संस्थाओं और राज्य के कर्मचारियों के बीच ऐसा तारतम्य रहता था कि वे एक-दूसरे से मिल-जुलकर काम करते थे। ग्राम पंचायत तथा जाति पंचायतों के निर्णय राज्यों द्वारा माननीय होते थे। स्वायत्त शासन का स्वरूप स्वायत्त शासन के निम्न रूप प्रचलित थे

संघ
जैन ग्रंथों में हमें ज्ञात होता है कि राजस्थान के गाँवों तथा कस्बों में संघ नाम की एक संस्था होती थी जिसकी सदस्यता एतद् सम्बन्धी गाँव के कुछ एक सथाने व्यक्ति करते थे। संघ का मुख्य कार्य यह रहता था कि यह धार्मिक उत्सव, पर्वो, प्रवचनों, धर्म यात्राओं और संघों के कार्यक्रमों तथा धार्मिक संस्थाओं के संबंध में निर्णय ले और उनको उचित व्यवस्था करें संघ का प्रमुख संघपति कहलाता था।
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गोष्ठी
इनका कार्य किसी व्यवस्था या धार्मिक संस्था की देखरेख रहता था। मन्दिरों की व्यवस्था के लिए भी गोष्ठियाँ थीं, तो विशेष व्यवसायों के लिए भी इनके पास एक धनराशि भी रहती थी जो ‘मण्डपिका’ के करों मे या अनुदान से बनती थी।
पंचकुल
पंचकुल एक स्थानीय संस्था होती थी जिन्हें अर्द्ध-सामाजिक और अर्द्ध-राजनीतिक कहा जा सकता है। पंचकुलों का प्रमुख कार्य भूमि से सम्बन्धित था। जिसमें भूमि का बदलना, उसका नाम, उपज की व्यवस्था करना आदि था। सरकार द्वारा जो भी आदेश भूमि सम्बन्धी होते थे उनका परिपालन पंचकुल के द्वारा करवाया जाता था. इस संस्था द्वारा क्रय-विक्रय के कर लगाए जाते थे.
पंचायत
पंचकुल को यह परम्परा पंचायत, चोतरा, चोर, हथाई आदि संस्थाओं में देखी जा सकती है। गाँवों को पंचायत अपनी-अपनी सीमाओं में होने वाले भूमि सम्बन्धी झगड़ों तथा खेती की सरहद के फैसले करती थी। जन्म-मृत्यु की गणना का ब्यौरा भी रखा जाने लगा था।
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मध्यकालीन गांव का प्रशासन FAQ
Ans – शासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी.
Ans – मध्यकाल में गांव प्रशासनिक रूप से ‘मौजे’ कहलाते थे.
Ans – मध्यकाल में गाँव दो प्रकार के होते थे ‘असली’ (पहले के) व ‘दाखिली’ (नए बसे मौजे)।
Ans – गोष्ठी का कार्य किसी व्यवस्था या धार्मिक संस्था की देखरेख रहता था.
Ans – पंचकुल एक स्थानीय संस्था होती थी जिन्हें अर्द्ध-सामाजिक और अर्द्ध-राजनीतिक कहा जा सकता है.
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