नागभट्ट प्रथम : गुर्जर-प्रतिहार वंश | नागभट्ट प्रथम को जालौर, अवन्ति तथा कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक कहा जाता है. इसे “हरीशचंद्र” के नाम से जाना जाता था. इसकी राजधानी कन्नौज थी. इसकी मृत्यु 760 ई. में हुई थी
नागभट्ट प्रथम : गुर्जर-प्रतिहार वंश
नागभट्ट प्रथम को जालौर, अवन्ति तथा कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक कहा जाता है. इसे “हरीशचंद्र” के नाम से जाना जाता था. इसकी राजधानी कन्नौज थी. इसकी मृत्यु 760 ई. में हुई थी.
नागभट्ट का समय 730 ई. से 760 ई. तक माना जाता है. जालौर-अवंती-कन्नौज प्रतिहारों की नामवाली नागभट्ट से शुरू होती है. इस वंश के प्रवर्तक नागभट्ट को “नागावलोक” भी कहा जाता है. इसका दरबार “नागावलोक का दरबार” कहलाता था.
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राष्ट्रकुटों से युद्ध :- ऐसा प्रतीत होता है की नागभट्ट को अपने समकालीन दक्षिण भारत के राष्ट्रकुटों से भी लोहा लेना पड़ा था. राष्ट्रकूट नरेश दन्तिदुर्ग ने कोसल, कलिंग, श्रीशैल, मालवा, तत्ता, टंक, सिंध तथा कांची पर अपना अधिकार कर लिया था. दन्तिदुर्ग ने उज्जैन में हिरण्यगर्भ यज्ञ किया था तथा इस अवसर पर उसने गुर्जर नरेश को प्रतिहार {द्वारपाल} नियुक्त किया था. यह नरेश नागभट्ट प्रथम प्रतीत होता है. इसने भृगुकच्छ पर अपना अधिकार कर लिया था.
नागभट्ट प्रथम के बाद उसका भतीजा ककुस्थ सिंहासन पर बैठा था. इसे कक्कुक भी कहते है. ककुस्थ की मृत्यु के बाद उसका भाई देवराज सिंहासन पर बैठा था. वराह अभिलेख में इसे देलशक्ति के नाम से पुकारा गया है. ऐसा प्रतीत होता है की इसे कुछ युद्ध करने पड़े थे. ग्वालियर अभिलेख से प्रकट होता है की इसने अपने वेग से अनेक राजाओं को तितर-बितर कर दिया था. यह धर्मावलम्बी था. उसकी पत्नी भुयिकादेवी से वत्सराज का जन्म हुआ था.
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नागभट्ट प्रथम FAQ
Ans नागभट्ट प्रथम को जालौर, अवन्ति तथा कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक कहा जाता है
Ans नागभट्ट को “हरीशचंद्र” के नाम से जाना जाता था.
Ans नागभट्ट की राजधानी कन्नौज थी.
Ans नागभट्ट की मृत्यु 760 ई. में हुई थी.
Ans नागभट्ट का समय 730 ई. से 760 ई. तक माना जाता है.
Ans जालौर-अवंती-कन्नौज प्रतिहारों की नामवाली नागभट्ट से शुरू होती है.
Ans नागभट्ट को “नागावलोक” कहा जाता था.
Ans नागभट्ट के दरबार को “नागावलोक का दरबार” कहा जाता था.
Ans राष्ट्रकूट नरेश दन्तिदुर्ग ने कोसल, कलिंग, श्रीशैल, मालवा, तत्ता, टंक, सिंध तथा कांची पर अपना अधिकार कर लिया था.
Ans दन्तिदुर्ग ने उज्जैन में हिरण्यगर्भ यज्ञ किया था.
Ans नागभट्ट प्रथम के बाद उसका भतीजा ककुस्थ सिंहासन पर बैठा था.
Ans ककुस्थ को “कक्कुक” नाम से भी जाना जाता था.
Ans ककुस्थ की मृत्यु के बाद उसका भाई देवराज सिंहासन पर बैठा था.
Ans वराह अभिलेख में देवराज को “देलशक्ति” के नाम से पुकारा गया है.
Ans ग्वालियर अभिलेख से यह प्रकट होता है की देवराज ने अपने वेग से अनेक राजाओं को तितर-बितर कर दिया था.
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