नागभट्ट द्वितीय : गुर्जर-प्रतिहार वंश | वत्सराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय शासक बना था. इसकी माता का नाम सुन्दरदेवी था. इसने 795 ई. से 833 ई. तक शासन किया था
नागभट्ट द्वितीय : गुर्जर-प्रतिहार वंश
वत्सराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय शासक बना था. इसकी माता का नाम सुन्दरदेवी था. इसने 795 ई. से 833 ई. तक शासन किया था. अपने इन 38 वर्षों के शासन के दौरान प्रतिहार राज्य को एक शक्तिशाली साम्रज्य में परिवर्तित कर दिया था.
इसने कन्नौज को जीतकर अपनी राजधानी बनाई थी. इसका दरबार भी “नागावलोक का दरबार” कहलाता था. इसने सम्पूर्ण उत्तरी भारत की विजय की जिसमें उसके सामंतों, गुहिलों व चहमानों ने पूरा सहयोग दिया था.
राष्ट्रकूट आक्रमण :- इसके शासनकाल में दक्षिणी भारतवर्ष के राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय ने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया व नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर दिया था. अपने उत्तरी भारतवर्ष के अभियान के दौरान गोविन्द तृतीय ने बंगाल के पाल नरेश धर्मपाल को भी पराजित किया था. तत्पश्चात व अपने राज्य लौट गया था.
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कन्नौज विजय :- गोविन्द तृतीय के वापस चले जाने के बाद नागभट्ट द्वितीय ने पुनः अपनी शक्ति संगठित की व कान्यकुब्ज पर आक्रमण कर दिया था. कान्यकुब्ज नरेश चक्रायुध पराजित हुआ व कान्यकुब्ज पर नागभट्ट द्वितीय का अधिकार हो गया था. नागभट्ट द्वितीय की विजय का वर्णन ग्वालियर अभिलेख में मिलता है. इस विजय के परिणामस्वरूप कान्यकुब्ज [कन्नौज] प्रतिहार राजवंश की राजधानी बन गई थी.
पालों से युद्ध :- कान्यकुब्ज का चक्रायुध पाल नरेश धर्मपाल के संरक्षण में शासन कर रहा था. अतः उसकी पराजय की सूचना पाते ही धर्मपाल ने नागभट्ट द्वितीय के विरुद्ध युद्ध की घोषण कर दी थी. किन्तु इस युद्ध के दौरान धर्मपाल नागभट्ट द्वितीय से पराजित हो गया व बंगाल भाग गया था. चाकसू अभिलेख के अनुसार शंकरगण ने गौड़ नरेश को हराया व समस्त विश्व को जीत कर अपने स्वामी को समर्पित कर दिया था.
इस प्रकार नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज के आयुध वंश व बंगाल के पाल वंश को पराजित करके उत्तरी भारतवर्ष पर अपना अधिकार जमा लिया था. बकुला अभिलेख में उसे “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” कहा गया है.
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अन्य विजय :- ग्वालियर अभिलेख का कथन है की जिस प्रकार पतंगे अग्नि में गिरते है, उसी प्रकार अंदर, सिन्धु, विदर्भ व् कलिंग के नरेश नागभट्ट द्वितीय की ओर खींचते चले आए थे. इसी अभिलेख का कथन है की नागभट्ट द्वितीय ने निम्न प्रदेशों पर बलात् अधिकार कर लिया था :- 1. आनर्त उत्तरी कठियावाड़ 2. मालवा-मध्यप्रदेश 3. किरात-हिमाचल का कोई भाग 4. तुरुष्क- पश्चिमी भारत के मुस्लिम राज्य 5. वत्स-कौशाम्बी प्रदेश 6. मत्स्य-पूर्वी राजस्थान.
इस आधार पर डॉ. त्रिपाठी ने यह निष्कर्ष निकला है की नागभट्ट द्वितीय के साम्राज्य में कम से कम राजपुताना का कुछ भाग, उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भू-भाग, मध्य भारत, संभवतः कठियावाड़, कौशाम्बी तथा उसके पडौस में कुछ दक्षिणी-पूर्वी प्रदेश सम्मलित थे.
नागभट्ट द्वितीय की मृत्यु के बाद में उसका पुत्र रामभद्र शासक बना था. उसने 833 ई. से 836 ई. तक शासन किया था. यह अत्यंत निर्बल शासक सिद्ध हुआ था. इसका शासनकाल प्रतिहार वंश की अवनति के काल था. इस काल में प्रतिहार राज्य के अनेक भाग स्वतंत्र हो गए थे. इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय कालिंजर मंडल था. वराह अभिलेख से प्रकट होता है की यहाँ नागभट्ट द्वितीय ने दान दिया था. परन्तु उस दान का अनुमोदन रामभद्र के शासन में नहीं हो सका था.
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नागभट्ट द्वितीय : गुर्जर-प्रतिहार वंश FAQ
Ans वत्सराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय शासक बना था.
Ans नागभट्ट द्वितीय की माता का नाम सुन्दरदेवी था.
Ans नागभट्ट द्वितीय ने 795 ई. से 833 ई. तक शासन किया था.
Ans नागभट्ट द्वितीय ने 38 साल तक शासन किया था.
Ans नागभट्ट द्वितीय ने अपनी राजधानी कन्नौज स्थापित की थी.
Ans नागभट्ट द्वितीय के दरबार को “नागावलोक का दरबार” के नाम से जाना जाता था.
Ans नागभट्ट द्वितीय की कन्नौज विजय का वर्णन ग्वालियर अभिलेख में मिलता है.
Ans कन्नौज विजय के बाद प्रतिहार वंश की राजधानी कन्नौज स्थापित की गई थी.
Ans बकुला अभिलेख में नागभट्ट द्वितीय “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” कहा गया है.
Ans ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने निम्न प्रदेशों पर बलात् अधिकार कर लिया था :- 1. आनर्त उत्तरी कठियावाड़ 2. मालवा-मध्यप्रदेश 3. किरात-हिमाचल का कोई भाग 4. तुरुष्क- पश्चिमी भारत के मुस्लिम राज्य 5. वत्स-कौशाम्बी प्रदेश 6. मत्स्य-पूर्वी राजस्थान.
Ans नागभट्ट द्वितीय की मृत्यु के बाद में उसका पुत्र रामभद्र शासक बना था.
Ans रामभद्र ने 833 ई. से 836 ई. तक शासन किया था.
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