नापूजी और उसके उत्तराधिकारी | नापूजी समरसिंह की मृत्यु के पश्चात् बूंदी की गद्दी पर बैठा। अलाउद्दीन के साथ 1304 ई. के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गयी
नापूजी और उसके उत्तराधिकारी
नापूजी समरसिंह की मृत्यु के पश्चात् बूंदी की गद्दी पर बैठा। अलाउद्दीन के साथ 1304 ई. के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गयी। नापूजी की मृत्यु के बाद उसका हल्लू हाड़ौती का शासक बना। हल्लू का उत्तराधिकारी वीरसिंह बड़ा निकम्मा शासक सिद्ध हुआ। अभाग्यवश उसके समय में सभी शक्तियां एक के बाद दूसरी बूंदी के विरुद्ध उठ खड़ी हुई जिनका सामना वह सफलतापूर्वक न कर सका।
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महाराणा लाखा ने बूंदी राज्य पर आक्रमण कर दिया और उसके फलस्वरूप हाड़ौती की कुछ भूमि, बम्बावदा और माण्डलगढ़ उसके हाथ लगे। 1432 ई. में गुजरात के अहमदशाह ने भी बूंदी-कोटा से दण्ड वसूल किया। महमूद खलजी ने मांडू से आकर तीन बार (1449, 1453 और 1459 ई.) बूंदी पर आक्रमण किया। 1459 ई. वाले अंतिम आक्रमण में वीरसिंह मारा गया और उसके दो लड़के समरसिंह और अमरसिंह बन्दी बनाकर मांडू ले जाये गये। इन लड़कों का धर्म परिवर्तना किया गया और उनके नाम ‘समरकन्दी’ और ‘उमरकन्दी’ रखे गये।
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राव नारायण ने सांगा की अधीनता में बाबर के विरुद्ध खानवा के युद्ध (1527 ई.) में भाग लिया। नारायणदास के बाद ‘नर्मद’ गद्दी पर बैठा। नर्मद ने अपनी पुत्री ‘कर्मवतीबाई’ का विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के साथ किया था जो ‘हाड़ी कर्मावती’ के नाम से राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्ध हुई। जब गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया तो रानी कर्मवती ने उसके सामने शस्त्र ग्रहण करके किले का बचाव किया, जब किला बचने की उम्मीद न रही तब ” झमर खटक अग्नि प्रवेश नहीं करके दुश्मन के ऊपर केशरिया करके जौहार (जुहार) किया।”
राव सूर्यमल (सूरजमल) अपने पिता नारायणदास के पीछे बूंदी की गद्दी पर बैठा। नैणसी ने लिखा है कि राणा सांगा ने हाड़ो कर्मवती की इच्छानुसार उसके बालक राजकुमार विक्रमादित्य एवं उदयसिंह को रणथम्भौर का दुर्ग दिया था।
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नापूजी और उसके उत्तराधिकारी FAQ
Ans – समर सिंह के बूंदी की गद्दी पर नापूजी बैठे थे.
Ans – नापूजी की मृत्यु 1304 ई. को हुई थी.
Ans – नापूजी की मृत्यु अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए हुई थी.
Ans – नापूजी की मृत्यु के बाद बूंदी का शासक हल्लू बना था.
Ans – वीरसिंह 1459 ई. को मारा गया था.
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