पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन | पृथ्वीराज चौहान को ‘अन्तिम हिन्दू सम्राट’ कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान शाकम्भरी के चौहानों में ही नहीं अपितु राजपूताना के राजाओं में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है
पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन
पृथ्वीराज चौहान को ‘अन्तिम हिन्दू सम्राट’ कहा जाता है। यह ‘रायपिथोरा’ के नाम से भी प्रसिद्ध था। पृथ्वीराज चौहान शाकम्भरी के चौहानों में ही नहीं अपितु राजपूताना के राजाओं में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उसने मात्र 11 वर्ष की आयु में अपनी प्रशासनिक एवं सैनिक कुशलता के आधार पर चौहान राज्य को सुदृढीकृत किया। अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए दिग्विजय की नीति से तुष्ट किया, न केवल अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया अपितु आंतरिक विद्रोहों तथा उपद्रवों का दमन कर समूचे राज्य में शांति एवं व्यवस्था स्थापित कर उसे सुदृढ़ता भी प्रदान की।
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पृथ्वीराज ने अपने चारों ओर के शत्रुओं का खात्मा कर ‘दलपगुल’ (विश्वविजेता) की उपाधि धारण की। इस प्रकार अपने प्रारंभिक काल में शानदार सैनिक सफलताएँ प्राप्त कर अपने आपको महान् सेनानायक एवं विजयी सम्राट सिद्ध कर दिखाया।

परन्तु उसके शासन का दूसरा पक्ष भी था जिसमें उसकी प्रशासनिक क्षमता एवं रणकौशलता में त्रुटियाँ दृष्टिगत होती है। उसमें कूटनीतिक सूझबूझ की कमी थी और वह राजनीतिक अहंकार से पीड़ित था। उसकी दिग्विजय नीति से पड़ौसी शासक शत्रु बन गए। उसने मुस्लिम आक्रमणों को गंभीरता से नहीं लिया और न ही वह अपने शत्रु के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा खड़ा कर सका। संभवतः तराइन के मैदान में हारने का प्रमुख कारण यही रहा। वह न केवल वीर, साहसी एवं सैनिक प्रतिभाओं से युक्त था अपितु विद्वानों एवं कलाकारों का आश्रयदाता भी था।
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‘पृथ्वीराज रासो’ का लेखक चन्दरबरदाई, ‘पृथ्वीराज विजय’ का लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशाघर, पृथ्वीभट्ट, विश्वरूप, विद्यापति गौड़ आदि अनेक विद्वान, कवि और साहित्यकार उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। उसके शासनकाल में ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था। ऐसे अनेक विद्यालय मौजूद थे जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त था। इस प्रकार वह एक महान् विद्यानुरागी शासक था। डॉ. दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को सुयोग्य शासक कहा है।
उसने तारागढ़ नाम के दुर्ग को सुदृढ़ता प्रदान की ताकि अपनी राजधानी की शत्रुओं से रक्षा की जा सके। उसने अजमेर नगर का परिवर्धन कर अनेक मंदिरों एवं महलों का निर्माण करवाया। राजस्थान के इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा उसके गुणों के आधार पर ही उसे योग्य एवं रहस्यमयी शासक बताते हैं। वह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान राजपूतों के इतिहास में अपनी सीमाओं के बावजूद एक योग्य एवं महत्त्वपूर्ण शासक रहा। पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने युद्धों के वातावरण में रहते हुए भी चौहान राज्य की प्रतिभा को साहित्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में पुष्ट किया।
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पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन FAQ
Ans – पृथ्वीराज चौहान को ‘अन्तिम हिन्दू सम्राट’ कहा जाता है.
Ans – पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष की आयु में पनी प्रशासनिक एवं सैनिक कुशलता के आधार पर चौहान राज्य को सुदृढीकृत किया.
Ans – पृथ्वीराज ने अपने चारों ओर के शत्रुओं का खात्मा कर ‘दलपगुल’ (विश्वविजेता) की उपाधि धारण की.
Ans – ‘पृथ्वीराज रासो’ का लेखक चन्दरबरदाई था.
Ans – ‘पृथ्वीराज विजय’ का लेखक जयानक था.
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