राणा सांगा | सांगा का राज्यभिषेक मई 1509 ई. में 27 वर्ष की उम्र में किया गया था. वह भारतीय इतिहास में ‘हिन्दुपत’ के नाम से विख्यात है
राणा सांगा
राणा सांगा की प्रारंभिक परिस्थिति: महाराणा रायमल के तेरह कुँवर और दो पुत्रियाँ थीं जिनमें पृथ्वीराज, जयमल, राजसिंह तथा संग्रामसिंह (राणा सांगा) के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इन सभी राजकुमारों में पृथ्वीराज बड़ा योग्य और युद्ध-विद्या में निपुण था तथा संग्रामसिंह महत्त्वाकांक्षी और साहसी था।
सबसे पहले तो राज्य की प्राप्ति पृथ्वीराज के लिए सम्भव थी और उसके पश्चात् जयमल तथा राजसिंह को राज्य का अधिकार मिल सकता था। इधर महाराणा रायमल का चाचा सारंगदेव भी अपने को राज्य का अधिकारी मानता था। क्षेमकर्ण का पुत्र सूरजमल तो रायमल को ही मेवाड़ का शासक स्वीकार करना आपत्तिजनक समझता था। ऐसी स्थिति में सांगा के लिए राज्य प्राप्त करने की आशा दूर की बात थी।
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कुँवरों में परस्पर विरोध :
ऐसा कहा जाता है कि एक दिन कुँवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्रामसिंह अपनी-अपनी जन्म-पत्रियाँ लेकर एक ज्योतिषी के यहाँ पहुँचे। ज्योतिषी ने बताया कि संग्रामसिंह का राजयोग बड़ा बलिष्ठ है। पृथ्वीराज ने आवेश में आकर तलवार निकाली जिससे संग्रामसिंह तो बच गया परन्तु उसकी हूल से उसकी एक आँख जाती रही। महाराजा रायमल का चाचा सारंगदेव वहाँ आ पहुँचा।
सारंगदेव ने कहा कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर आपस में मन-मुटाव रखना अच्छा नहीं है। इससे तो अच्छा हो कि वे ‘भीमलगाँव की चारण जाति की पुजारिन’ से, जो चमत्कारिक है, इस संबंध का निर्णय करा लें। पुजारिन ने ज्योतिषी की भविष्यवाणी का समर्थन किया। इसको सुनते ही तीनों में वहीं युद्ध आरम्भ हो गया। आपसी युद्ध में पृथ्वीराज, सारंगदेव तथा संग्रामसिंह घायल हो गये।
भागता हुआ संग्रामसिंह और उसका पीछा करता हुआ जयमल सेवन्त्री गाँव पहुँचे। यहाँ राठौड़ बीदा ने संग्राम सिंह को शरण दी और स्वयं जयमल के साथ लड़ता हुआ मारा गया। संग्रामसिंह अजमेर पहुँचा जहाँ कर्मचन्द पँवार ने उसे पनाह दी और वहाँ कुछ समय अज्ञातवास में रहकर अपनी शक्ति का संगठन करता रहा।
राणा सांगा का राज्यारोहण :
कुँवर पृथ्वीराज की मृत्यु धोखे से विष की गोलियाँ निगलने से हो गयी और कुँवर जयमल सोलंकियों से युद्ध करता मारा गया। राजसिंह वैसे ही निकम्मा था जिससे मेवाड़ के सामन्त अप्रसन्न थे। सारंगदेव की हत्या पृथ्वीराज के द्वारा हो चुकी थी।
अब संग्रामसिंह के विरोधियों की संख्या समाप्त हो चुकी थी और रायमल के लिए संग्रामसिंह को उत्तराधिकारी घोषित करने के अतिरिक्त कोई मार्ग न था। सम्भवतः जब रायमल मृत्यु शैय्या पर था तो 27 वर्षीय साँगा को अजमेर से आमन्त्रित कर मई, 1509 ई. में मेवाड़ के राज्य का स्वामी बनाया गया। अपनी सूझबूझ, कर्तव्यनिष्ठा तथा घटना-चक्र के सहयोग से सांगा ने मेवाड़ नेतृत्व के स्वप्न को साकार किया। राणा सांगा भारतीय इतिहास में ‘हिन्दुपत’ के नाम से विख्यात है।
राणा सांगा की प्रारंभिक कठिनाइयाँ :
मुंशीदेवी प्रसाद के अनुसार सांगा वैसे तो मेवाड़ का शासक बन गया, परन्तु उसने पाया कि उसका राज्य चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ है। इस समय दिल्ली में लोदी-वंश का सुल्तान सिकन्दर, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरुद्दीन राज्य करते थे। इस स्थिति को संतुलित करने के लिए महाराणा ने अपने हितैषी कर्मचन्द पवार को रावत की पदवी देकर सम्मानित किया।
उत्तर-पूर्वी मेवाड़ के भू-भाग में एक शक्तिशाली सामन्त स्थापित कर सांगा ने अपनी सीमा की सुरक्षा कर ली। दक्षिण और पश्चिमी मेवाड़ की सुरक्षा के लिए उसने सिरोही तथा वागड़ के शासकों को अपना मित्र बनाया तथा ईडर के राज्य-सिंहासन पर अपने प्रशंसक रायमल को बिठाया। मारवाड़ का शासक भी उसका सहयोगी बन गया।
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सांगा के अन्तिम दिन :
युद्ध के मैदान से मूर्च्छित अवस्था में सांगा को पालकी में बसवा ले जाया गया। ज्यों ही उसको होश आया वह पुनः युद्ध स्थल के लिए उद्यत हुआ। उसने फिर से चारों ओर अपने सामन्तों को रण-स्थल में उपस्थित होने के लिए पत्र लिखे और स्वयं ईरिच के मैदान में बाबर से टक्कर लेने के लिए आ डटा।
जब उसके साथियों ने देखा कि इस बार पराजय से मेवाड़ का सर्वनाश होगा तो उन्होंने मिलकर उसे विष दे दिया, जिसके फलस्वरूप 30 जनवरी, 1528 को 46 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु गयी। उसका शव कालपी से माण्डलगढ़ ले जाया गया जहाँ उसका समाधि-स्थल आज भी उस महान् योद्धा का स्मरण दिला रहा है।
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राणा सांगा FAQ
Ans – महाराणा रायमल के तेरह कुँवर और दो पुत्रियाँ थीं.
Ans – महाराणा सांगा का राज्यरोहण ई, 1509 ई. को किया गया था.
Ans – महाराणा सांगा का राज्यरोहण 27 वर्ष की आयु में किया गया था.
Ans – सांगा की मृत्यु 30 जनवरी, 1528 को हुई थी.
Ans – सांगा की मृत्यु 47 वर्ष की आयु में हुई थी.
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