राव मालदेव | अपने पिता राव गांगा की मृत्यु के बाद राव मालदेव 5 जून, 1532 को जोधपुर की गद्दी पर बैठा। उसका राज्याभिषेक सोजत में सम्पन्न हुआ
राव मालदेव
अपने पिता राव गांगा की मृत्यु के बाद राव मालदेव 5 जून, 1532 को जोधपुर की गद्दी पर बैठा। उसका राज्याभिषेक सोजत में सम्पन्न हुआ। राव मालदेव गांगा का ज्येष्ठ पुत्र था। जिस समय उसने मारवाड़ के राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली उस समय उसका अधिकार सोजत और जोधपुर के परगनों पर ही था। उस समय दिल्ली पर मुगल बादशाह हुमायूँ का शासन था। राव मालदेव राठौड़ वंश का प्रसिद्ध शासक हुआ।
राणा उदयसिंह की सहायता :
सबसे पहले जब 1532 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने मेवाड़ पर चढ़ाई की, उस समय मालदेव ने अपनी सेना भेजकर राणा विक्रमादित्य की सहायता की थी। ख्यातों के अनुसार मालदेव ने कुम्भलगढ़ में आकर टिके हुए उदयसिंह को राणा घोषित करने तथा बनवीर के विरुद्ध लड़ने में अपना योगदान दिया था। जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि 1540 ई. में राव मालदेव ने राठौड़ जैता, कूंपा आदि सरदारों को मेवाड़ के उदयसिंह की सहायतार्थ भेजा, जिसके फलस्वरूप बनवीर को निकाला गया और उदयसिंह को चित्तौड़ के सिंहासन पर बिठाया। इसके बदले में महाराणा ने बसन्तराय नाम का हाथी और चार लाख फीरोजे पेशकशी के मालदेव के पास भेजे।
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भाद्राजूण पर अधिकार सर्वप्रथम उसने भाद्राजूण के सींधल स्वामी वीरा पर चढ़ाई कर दी। इस समय मेढ़ते के स्वामी वीरमदेव ने भी उसकी सेना के साथ आकर इसमें योगदान दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद वीरा मारा गया और वहाँ मालदेव का अधिकार हो गया। इसके अलावा रायपुर पर भी मालदेव का अधिकार हो गया। मालदेव की नागौर विजय नागौर के शासक दौलतखों ने जब मेड़ता लेने का प्रयत्न किया तब मालदेव ने खान पर चढ़ाई कर नागौर पर अधिकार कर लिया। राव ने वीरम माँगलियोत को यहाँ का हाकिम नियुक्त कर दिया।
मालदेव का मेड़ता तथा अजमेर पर अधिकार :
मालदेव के संबंध मेड़ता के राव वीरम से बिगड़ चुके थे। वीरम को मेड़त से निकाल दिया गया और अजमेर से भी निकाल दिया गया। जब उसमें उसे कोई सफलता न मिली तो वह मलारणे के मुसलमान थानेदार से मिला और उसकी सहायता से रणथम्भौर के हाकिम के पास गया, जो उसे शेरशाह सूरी के पास ले गया।

पहोबा साहेबा का युद्ध :
मालदेव ने 1542 ई. के आसपास राज्य विस्तार की इच्छा से कूपा की अध्यक्षता में एक बड़ी सेना बीकानेर की तरफ भेजी। राव जैतसी मुकाबला करने के लिए साहेबा के मैदान में पहुँचा। मालदेव की शक्तिशाली सेना के सामने वह न टिक सका और वह अनेक योद्धाओं के साथ खेत रहा। मालदेव ने जांगल देश पर अधिकार स्थापित कर लिया।
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राव मालदेव और हुमायूँ
शेरशाह सूरी से हारने के बाद हुमायूँ सिन्ध की ओर भागा और 1541 ई. के प्रारम्भ में भक्कर पहुँचा। मालदेव ने इसी समय हुमायूँ के पास यह संवाद भेजा कि वह उसे शेरशाह के विरुद्ध सहायता देने के लिए उद्यत है। इस सन्देश में सूझबूझ थी, क्योंकि शेरशाह की अनुपस्थिति में मालदेव सीधा दिल्ली और आगरा की ओर प्रयाण कर सकता था और हुमायूँ के नाम से – अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा सकता था। परन्तु हुमायूँ ने इस सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसे थट्टा के शासक शाहहुसैन की सहायता से गुजरात विजय की आशा थी। वह सात माह शेवाने के घेरे में अपनी शक्ति का अपव्यय करता रहा। अब शाहहुसैन तथा भ यादगार मिर्जा उसके विरोधी बन चुके थे।
इस निराशा के वातावरण से क्षुब्ध होकर हुमायूँ ने लगभग एक वर्ष के बाद मारवाड़ की ओर जाने का विचार किया। 7 मई, 1542 को हुमायूँ जोगीतीर्थ (कूल-ए-जोगी) पहुँचा। ‘जोगीतीर्थ’ पहुँचने पर मालदेव द्वारा भेजी गयी अशर्फियों तथा रसद से हुमायूँ का स्वागत किया गया। उस समय यह भी संवाद उसके पास भेजा गया कि मालदेव हर प्रकार से बादशाह की सहायता के लिए उद्यत है और उसे बीकानेर का परगना सुपुर्द करने को तैयार है। इतना सभी होते हुए भी बादशाह के साथी मालदेव से शकित थे। इस संबंध में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए मीर समन्दर, रायमल सोनी, अतका खाँ आदि व्यक्तियों को मालदेव के पास बारी-बारी से भेजा गया। सभी का लगभग यही मत था कि मालदेव ऊपर से मीठी-मीठी बातें करता है, परन्तु उसका हृदय साफ नहीं हैं। इस पर हुमायूँ ने तुरन्तु अमरकोट की ओर प्रस्थान किया। लौटते हुए बादशाही दल का मालदेव की थोड़ी सी सेना ने पीछा किया जिससे भयभीत हो हुमायूँ मारवाड़ से भाग निकला।
मालदेव के अन्तिम वर्ष :
मालदेव ने अपने राज्यत्व-काल से अन्त तक अपना जीवन युद्धमय रखा जिससे उसकी फौलादी शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गयी। मारवाड़ में मेड़ता और जैतारण पर मुगलों का अधिकार हो गया। 1562 ई. में उसकी मृत्यु से यह क्रम राजस्थान में बड़ी तेजी से बढ़ा।
‘जोधपुर राज्य की ख्यात’ में राव मालदेव की 25 रानियों और 12 पुत्रों के नाम मिलते हैं। पुत्रों में कछवाही लाछलदे का पुत्र राम, झाली रानी हीरादे/स्वरूपदे (झाला माना की पुत्री) का पुत्र उदयसिंह, चन्द्रसेन, रायपाल, रायमल आहाड़ी लाछा रतनदे के पुत्र भाण और रतनसी, भोजराज, जादव राजबाई के पुत्र विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, आसकरण और रानी सोनगरी का पुत्र गोपाल हुए। जैसलमेर के लूणकरण की पुत्री उम्मादे (रूठी रानी) जीवन भर अकेली रही।
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राव मालदेव FAQ
Ans – राव गांगा की मृत्यु के बाद राव मालदेव जोधपुर की गद्दी पर बैठा था.
Ans – मालदेव का राज्याभिषेक 5 जून, 1532 को किया गया था.
Ans – मालदेव का राज्याभिषेक सोजत में संपन्न किया गया था.
Ans – राव गंगा का सबसे बड़ा पुत्र मालदेव था.
Ans – राव मालदेव की मृत्यु 1562 ई. को हुई थी.
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