राव मुकुन्द सिंह के उत्तराधिकारी | ‘राव जगतसिंह’ की आयु अपने पिता की मृत्यु के समय 14 वर्ष की थी। वह अपने पिता का इकलौता पुत्र था
राव मुकुन्द सिंह के उत्तराधिकारी
‘राव जगतसिंह‘ की आयु अपने पिता की मृत्यु के समय 14 वर्ष की थी। वह अपने पिता का इकलौता पुत्र था। धर्मत के में मुकुन्दसिंह के खेत रहने पर वह कोटा राज्य का स्वामी बना। हैदराबाद के अभियान के अवसर पर उसकी दक्षिण में ही 1683 के लगभग, मृत्यु हो गयी। जगतसिंह की मृत्यु होने पर सम्राट ने ‘किशोरसिंह’ को 3000 का मनसब दिया और खिलअत देका सम्मानित किया।
‘राव रामसिंह‘ राव किशोरसिंह का द्वितीय पुत्र था। उसे 1000 का मनसब सम्राट की ओर से प्राप्त हुआ। जब 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी और राजकुमारों में उत्तराधिकार का युद्ध आरम्भ हो गया तो राव रामसिंह ने आजम का साथ दिया। ‘जाजव के युद्ध’ में हरावल में रहते हुए रामसिंह मारा गया, परन्तु अंत समय तक वह आजम के पक्ष में बना रहा। इस युद्ध में बूंदी के हाड़ा मुअज्जम के पक्ष में लड़े और कोटा के हाड़ा आजम के पक्ष में लड़े। प्रथम बार हाड़ाओं की दोनों शाखाओं में विरोधी दल में सम्मिलित होकर आपस में युद्ध हुआ और जाजऊ की लड़ाई से ही कोटा व बूंदी में पारस्परिक शत्रुता हो गई।
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राव रामसिंह की जाजव के रणक्षेत्र में 1707 ई. को वीरगति प्राप्त होने पर उसका पुत्र ‘भीमसिंह‘ कोटा राज्य का स्वामी बना उसने खीचियों से गागरौन लिया। बारां, मांगरौल, मनोहरथाना और शेरगढ़ के परगनों पर अपना अधिकार स्थापित किया तथा भील राजा चन्द्रसेन को परास्त कर उसके राज्य को कोटा राज्य में मिलाया। फर्रुखसियर की मृत्यु के बाद इसने फिर सैयद बंधुओं को निजाम के विरुद्ध सहायता की, सम्राट ने उसे सात हजारी मनसब ‘माही मरातिव’ तथा ‘महाराव’ की पदवी से विभूषित किया। परन्तु वह बुरहानपुर के निकट कुरवाई के मैदान में 1720 ई. में मारा गया।
भीमसिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘अर्जुनसिंह‘ कोटा राज्य की गद्दी पर बैठा। अर्जुनसिंह अपुत्रवान गुजर गया। इसने अपने छोटे भाई ‘दुर्जनशाल‘ को गद्दी पर बैठाने का कहने से वह गद्दी पर बैठा। दुर्जनशाल के गद्दी पर बैठने से उसका बड़ा भाई श्यामसिंह नाराज होकर जयपुर से फौज की मदद लेकर कोटा पर ले आया। राव दुर्जनशाल युद्ध करने को सामने आया और ‘अत्रालिया के युद्ध’ में श्यामसिंह मारा गया।
महाराव दुर्जनशाल ने निःसंतान होने के कारण ‘अजीतसिंह‘ कोटा की गद्दी पर बैठा। अजीतसिंह के समय राणोजी सिंधिया ने कोटा पर आक्रमण किया। राजामाता ने चतुराई से काम लेकर राणोजी सिंधिया को राखी भेजकर अपना धर्मभाई बनाया। अजीतसिंह ने लगभग डेढ़ वर्ष राज्य किया। उसके तीन पुत्र शत्रुशाल, गुमानसिंह और राजसिंह थे।
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शत्रुशाल अजीतसिंह की मृत्यु के बाद बूंदी की गूदी पर बैठा। इसके काल में सबसे विकट युद्ध ‘मरवाड़ा या भटवाड़ा का युद्ध’ हुआ। यह युद्ध शत्रुशाल हाड़ा और जयपुर के माधोसिंह के मध्य रणथम्भौर को लेकर हुआ। ई.स. 1861 में दोनों सेनाओं में घमासान हुआ जिसमें जयपुर की हार हुई। इस युद्ध में विजयी होने के कारण ‘झाला जालिमसिंह‘ के सम्मान में वृद्धि हुई और उसे कोटा राज्य का मुसाहिब (प्रधानमंत्री बनाया गया।
महाराव शत्रुशाल की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई गुमानसिंह कोटा की गद्दी पर बैठा झाला जालिमसिंह ने अपनी बहिन का विवाह गुमानसिंह के साथ कर दिया तो वह राज्य का सर्वेसर्वा बन बैठा। किन्हीं कारणों से जालिमसिंह को कोटा से निकाल दिया गया तो वह महाराणा अरिसिंह के पास उदयपुर चला गया। महाराणा अरिसिंह ने जालिमसिंह को ‘राजराणा’ की पदवी दी और चीतखेड़ा की जागीर भी दी।
राव गुमानसिंह की मृत्यु के बाद वि.स. 1827 में गद्दी पर बैठने के समय ‘उम्मेदसिंह‘ की आयु 10 वर्ष की थी। महाराव गुमानसिंह ने इसके मामा जालिमसिंह को राज्य तथा इसका संरक्षक बनाया था। जालिमसिंह ने 50 वर्ष तक महाराव को एक कठपुतली की तरह रखकर राज कार्य चलाया। जब अंग्रेज पिण्डारियों का दमन करने लगे तो उन्होंने जालिमसिंह से सहायता मांगी। न चाहते हुए भी जालिमसिंह ने पिण्डारियों के विरुद्ध अंग्रेजों की सहायता की। 1817 ई. में पिण्डारियों को समाप्त कर दिया गया। जालिमसिंह ने कोटा और अंग्रेजों के बीच 26 दिसंबर, 1817 को संधि कराई। सहायक साँध की पूरक धारा के अनुसार महाराव उम्मेदसिंह के ज्येष्ठ पुत्र एवं उसके वंशज कोटा के शासक होंगे तथा जालिमसिंह झाला एवं उसके वंशज कोटा राज्य के प्रशासक होंगे।
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राव मुकुन्द सिंह के उत्तराधिकारी FAQ
Ans – औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. में हुई थी.
Ans – भीमसिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘अर्जुनसिंह’ कोटा राज्य की गद्दी पर बैठा था.
Ans – पिण्डारियों को 1817 ई. में समाप्त कर दिया गया गया था.
Ans – जालिमसिंह ने कोटा और अंग्रेजों के बीच संधि 26 दिसंबर, 1817 ई. को करवाई थी.
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