विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था | Rule of the Vijayanagara Empire | विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई का क्रम [घटते हुए] इस प्रकार था :- प्रान्त [मंडल]-कोट्टम [जिला]-नाडू — मेलाग्राम [50 ग्राम का समूह]-ऊर [ग्राम].
विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था | Vijayanagara Empire
विजयनगर कालीन सेनानायकों को नायक कहा जाता था. ये नायक वस्तुतः भुसामंत थे, जिन्हें राजा वेतन के बदले या उनकी अधीनस्थ सेना के रख-रखाव के लिए विशेष भू-खंड दे देता था. जो अमरम कहलाता था.
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आयंगर व्यवस्था :- प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रत्येक ग्राम को एक स्वतंत्र रूप से संगठित किया गया था. इस ग्रामीण इकाइयों पर शासन करने हेतु बारह प्रशासकीय अधिकारीयों की न्युक्ति की जाति थी, जिनको सामूहिक रूप से आयंगर कहा जाता था. ये अवैतनिक होते ठगे. इनकी सेवाओं के बदले सरकार इन्हें पुर्णतः लगान मुक्त व कर मुक्त भूमि प[रदान करती थी. इनका पद अनुवांशिक होता था. वह इस पद को बेच या गिरवी रख सकता था. ग्राम स्तर की कोई भी सम्पति इन अधिकारीयों की इजाजत के बगैर न तो बेचीं जा सकती थी व न ही दान में दी जा सकती थी.
विजयनगर आने वाले प्रमुख विदेशी यात्री
यात्री | देश | काल | शासक |
निकोलो कोंटी | इटली | 1420 ई. | देवराय 1 |
अब्दुर्रज्जाक | फारस | 1442 ई. | देवराय 2 |
नूनिज | पुर्तगाल | 1535 ई. | अच्युत राय |
डोमिंग पायस | पुर्तगाल | 1515 ई. | कृष्णदेव राय |
बारबोसा | पुर्तगाल | 1515-16 ई. | कृष्णदेव राय |
कर्णिक नामक आयंगर के पास जमीन के क्रय-विक्रय से संबंधित सम्पूर्ण दस्तावेज होते थे. विजयनगर साम्राज्य की आय का सबसे बड़ा स्त्रोत लगान था. भू-राजस्व की दर उपज का 1/6 भाग थी. विवाह कर, वर व वधु दोनों से लिया जाता था. विधवा से विवाह करने वाले इस प्रकार के कर से मुक्त थे.
- उंबली :- ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि की भू-धारण पद्धति थी.
- रत्त कोड़गे :- युद्ध में शौर्य का पदर्शन करने वाले मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि को कहा जाता था.
- कुट्टगि :- ब्राहमण, मंदिर या बड़े भूस्वामी, जो स्वयं कृषि नहीं करते थे, किसानों को पट्टे पर भूमि दे देते थे, ऐसी भूमि को कुट्टगि भूमि कहा जाता था.
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वे कृषक मजदुर जो भूमि के क्रय-विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थे, कूदि कहलाते थे. विजयनगर का सैन्य विभाग कदाचार कहलाता था, इस विभाग का उच्च अधिकारी दंडनायक व सेनापति होता था. टकसाल विभाग को जोरीखाना कहा जाता था.
चेट्टीयों की तरह व्यापर में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था. उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसने वाले लोगों को बड़वा कहा जाता था. विजयनगर में दास प्रथा प्रचलित थी. मनुष्यों के क्रय-विक्रय को वेस-वग कहा जाता था.
मंदिरों में रहने वाली स्त्रियाँ देवदासी कहलाती थी. इनको आजीविका के लिए भूमि या नियमित वेतन दिया जाता था. विजयनगर राज्य में कल्याण मंडप की रचना मंदिर निर्माण का एक विशिष्ट अभिलक्षण था. विजयनगर की मुद्रा पेगोडा थी.
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विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था FAQ
Ans विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई का क्रम [घटते हुए] इस प्रकार था :- प्रान्त [मंडल] — कोट्टम [जिला] — नाडू — मेलाग्राम [50 ग्राम का समूह] — ऊर [ग्राम].
Ans विजयनगर कालीन सेनानायकों को नायक कहा जाता था.
Ans कर्णिक नामक आयंगर के पास जमीन के क्रय-विक्रय से संबंधित सम्पूर्ण दस्तावेज होते थे.
Ans विजयनगर साम्राज्य की आय का सबसे बड़ा स्त्रोत लगान था.
Ans भू-राजस्व की दर उपज का 1/6 भाग थी.
Ans विवाह कर, वर व वधु दोनों से लिया जाता था.
Ans उंबली :- ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि की भू-धारण पद्धति थी.
Ans रत्त कोड़गे :- युद्ध में शौर्य का पदर्शन करने वाले मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि को कहा जाता था.
Ans ब्राहमण, मंदिर या बड़े भूस्वामी, जो स्वयं कृषि नहीं करते थे, किसानों को पट्टे पर भूमि दे देते थे, ऐसी भूमि को कुट्टगि भूमि कहा जाता था.
Ans वे कृषक मजदुर जो भूमि के क्रय-विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थे, कूदि कहलाते थे.
Ans विजयनगर का सैन्य विभाग कदाचार कहलाता था.
Ans चेट्टीयों की तरह व्यापर में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था.
Ans मनुष्यों के क्रय-विक्रय को वेस-वग कहा जाता था.
Ans उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसने वाले लोगों को बड़वा कहा जाता था.
Ans विजयनगर की मुद्रा पेगोडा थी.
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