रानी पद्मिनी की कथा | पद्मिनी की कथा का प्रवचन मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पद्मावत’ नामक हिन्दी – ग्रंथ से आरंभ होना माना जाता है. पद्मिनी श्रीलंका के राजा गोवर्धन की पुत्री थी
रानी पद्मिनी की कथा
पद्मिनी की कथा का प्रवचन मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पद्मावत’ नामक हिन्दी – ग्रंथ से आरंभ होना माना जाता है। इस ग्रंथ की रचना शेरशाह सूरी के समय 1540 ई. में हुई अर्थात् घटना के लगभग 240 वर्ष बाद। इस कथानक का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- ‘पद्मावत’ के अनुसार पद्मिनी सिंहलद्वीप (श्रीलंका) के राजा गोवर्धन (गन्धर्वसेन) एवं रानी चंपावती की पुत्री थी।
उसके पास मानव बोली की नकल करने वाला हीरामन तोता था। हीरामन ही रतनसिंह एवं पद्मिनी के विवाह का माध्यम बना। रतनसिंह के दरबार में रावध चेतन (काला चेतन) तांत्रिक ब्राह्मण था, जिसे पद्मिनी की ओर कुदृष्टि के कारण देश निकाला दे दिया गया।
चेतन ने बदला लेने के लिए दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन से पद्मिनी की अतिशय सुन्दरता का वर्णन किया। अलाउद्दीन ने अपनी सेना लेकर मेवाड़ पर चढ़ाई की और पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का आठ वर्ष तक घेरा डाला, लेकिन दुर्ग को जीत न सका।
अन्त वह रावल रतनसिंह के पास सन्देश भिजवाता है कि वह सिर्फ दर्पण में रानी का अक्स देखना चाहता है। उसे दर्पण में रानी का अक्स दिखाया तो रानी को प्राप्त करने की लालसा और तीव्र हो गई। जब रावल उसे विदाई देने आया तो अलाउद्दीन ने रावल को कैद कर लिया तथा रावल की एवज में पद्मिनी की मांग की।
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रानी पद्मिनी ने 1600 पालकियों सहित सुल्तान के खेमे की ओर कूच किया। पालकियों में वीर राजपूत योद्धा थे। 1600 डोलियों में पद्मिनी की सहेलियों के भेष राजपूत सैनिक बिठाये गये और उन्हें सुल्तान के खेमे तक पहुँचाया गया। प्रत्येक पालकी में एक वीर योद्धा सशस्त्र बैठाया गया तथा 6–6 सशस्त्र चुने हुए वीर कहारों के वेश में एक-एक पालकी लेकर गोरा के नेतृत्व में सुल्तान के खेमे में पहुँचे।
इस प्रकार पालकियों के साथ कुल 11,200 मौजूद थे। जैसे ही 1600 पालकियां दिल्ली के शाही महलों में पहुंची तो वीर राजपूतों के घमासान मारकाट के बाद रावल रतन सिंह एवं रानी पडुमिनों को मुक्त करवाकर चित्तौड़ ले आये। अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर पुनः आक्रमण किया। सुल्तान की सेना ने मजनिकों से किले की चयनों को तोड़ने का लगभग 8 महीने तक अथक प्रयत्न किया, पर उन्हें कोई सफलता न मिली।
स्त्रियाँ दुश्मनों से सुरक्षित नहीं रह सकती थी तो जोहर प्रणाली से राजपूत महिलाओं और बच्चों को धधकती हुई अग्नि में अर्पण कर दिया गया। इस कार्य के बाद किले के फाटक खोल दिये गये। राजपूतों ने केसरिया धारण किया तथा महिलाओं ने जौहर किया, जो मेवाड़ का प्रथम शाका’ कहलाता है।
इस युद्ध में रानी पद्मिनी के चाचा और भाई गोरा-बादल का शौर्य बड़ा प्रशंसनीय रहा। इस प्रकार चित्तौड़ अलाउद्दीन के हाथ में आ गया लेकिन वह पद्मिनी को पा न सका। ‘इस चित्तहरण कथा को समाप्त करके मलिक मुहम्मद जायसी ने चित्तौड़ को शरीर, रावल रत्नसिंह को हृदय, पद्मिनी को बुद्धि और अलाउद्दीन को माया की उपमा देकर लिखा है कि जो इस प्रेम कथा के तत्व को समझ सकें, वे इसे इसी दृष्टि से देखें।’

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पद्मिनी कथा की ऐतिहासिकता
वि.सं. 1422 में सम्यकत्वकौमुदी की निवृत्ति में, जिसे गुणेश्वर सूरि के शिष्य तिलक सूरि ने लिखी थी, राघव थे जिनमें चेतन को सुल्तान द्वारा सम्मानित किये जाने का उल्लेख है।
इस कथा का प्रवचन मुख्य रूप से मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पद्मावत’ नामक हिन्दी काव्य-ग्रन्थ से आरम्भ होना माना गया इस ग्रन्थ की रचना शेरशाह सूरी के समय 1540 ई. में की गयी थी। पद्मावत बनने के लगभग 70 वर्ष के बाद अकबर महान् के अन्तिम वर्षों में ‘हाजी उद्द्वीर’ ने जफरूलवली तथा जहाँगीर के प्रारंभिक वर्षों में ‘मुहम्मद कासिम फरिश्ता’ ने अपनी पुस्तक ‘तारीखे-फ़रिश्ता या ‘गुलशन-ए-इब्राहिमी’ पद्मावत के आधार पर लिखी।
इस प्रकार अकबरनामा (अबुल फजल), स्टीरियों डी मेगोर (फ्रांसीसी यात्री मनूची नैणसी री ख्यात (मुहणौत नैणसी), तारीख-ए-फरिश्ता (मुहम्मद कासिम फरिश्ता), एनॉल्स एण्ड एण्टिक्वीटीज (टॉड), पद्मिनी वर्णन (हाजी उद्द्बीर), ‘सीता चरित’ आदि परवर्ती ग्रंथों में इस कथानक का उल्लेख मिलता है लेकिन सूर्यमल्ल मिश्रण तथा अधिकांश इतिहासकार रान पद्मिनी को ऐतिहासिक चरित्र नहीं मानते हैं।
डॉ. दशरथ शर्मा एकमात्र ऐसे इतिहासकार हैं जो रानी पद्मिनी को ऐतिहासिक पात्र मानते हैं।
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रानी पद्मिनी की कथा FAQ
Ans – पद्मिनी की कथा का प्रवचन मलिक मुहम्मद जायसी के द्वारा ग्रंथ से आरंभ होना माना जाता है.
Ans – पद्मिनी की कथा का प्रवचन ‘पद्मावत’ नामक हिन्दी – ग्रंथ से आरंभ होना माना जाता है.
Ans – पद्मावत ग्रन्थ की रचना 1540 ई. में की गई थी.
Ans – ‘पद्मावत’ के अनुसार पद्मिनी के पिता सिंहलद्वीप (श्रीलंका) के राजा गोवर्धन थे.
Ans – रतनसिंह एवं पद्मिनी के विवाह का माध्यम हीरामन तोता बना था.
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