राणा कुंभा के दरबारी साहित्यकार | कुम्भा न केवल वीर, युद्धकौशल में निपुण तथा कला प्रेमी था वरन् एक विद्वान तथा विद्यानुरागी भी था। उसके दरबार कई विद्वान व साहित्यकार आश्रय पाते थे
राणा कुंभा के दरबारी साहित्यकार
दरबारी साहित्यकार :
मण्डन नामक प्रसिद्ध शिल्पी उसका आश्रित था जिसने देवमूर्ति प्रकरण, प्रासाद मण्डन, राजवल्लभ (भूपतिवल्लभ), रूपमण्डन, वास्तुमण्डन, वास्तुशास्त्र व वास्तुकार आदि पुस्तकों की रचना की। मण्डन के पुत्र गोविन्द ने उद्धारधोरणी, कलानिधि तथा द्वारदीपिका नामक ग्रन्थों की रचना की थी।
‘कलानिधि’ देवालयों के शिखर विधान पर केन्द्रित है जिसे शिखर रचना व शिखर के अंग-उपांगों के सम्बन्ध में कदाचित एकमात्र स्वतन्त्र ग्रंथ कहा जा सकता है। आयुर्वेदज्ञ के रूप में गोविन्द की रचना ‘सार समुच्यय’ में विभिन्न व्याधियों के निदान व उपचार की विधियाँ दी गई हैं। कुम्भा की पुत्री रमाबाई को ‘वागीश्वरी’ कहा गया है, वह भी अपने संगीत प्रेम के कारण प्रसिद्ध रही है।
कवि मेहा महाराणा कुम्भा के समय का एक प्रतिष्ठित रचनाकार था। उसकी रचनाओं में ‘तीर्थमाला’ प्रसिद्ध है जिसमें 120 तीर्थों का वर्णन है। मेहा कुम्भा के समय के दो सबसे महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो कुम्भलगढ़ और रणकपुर जैन मंदिर के समय उपस्थित था। हीरानन्द मुनि को कुम्भा अपना गुरु मानते थे और उन्हें ‘कविराज’ की उपाधि दी। कवि अत्रि और महेश कीर्तिस्तम्भ की प्रशस्ति के रचयिता थे।
इनके अतिरिक्त कान्ह व्यास एकलिंगमाहात्म्य का प्रसिद्ध लेखक था। सोमसुन्दर, मुनिसुन्दर, टिल्ला भट्ट, जयचन्द्रसूरि, सोमदेव, भुवनसुन्दरसूरि, सुन्दरसूरि, माणिक्य, सुन्दरगणि आदि कुम्भाकालीन जैन विद्वान थे जिन्होंने धर्म और काव्य ग्रन्थों की रचना द्वारा उस युग की शिक्षा के स्तर को उन्नत किया था। उस समय अनेक विद्वान महाराष्ट्र, गुजरात और मालवा से यहाँ आते रहे और यहाँ के विद्वान उन भागों में जाते रहे, जिनमें मण्डन तथा अनेक जैनाचार्य और सोमपुरे शिल्पी विशेष उल्लेखनीय हैं।
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मण्डन (खेता ब्राह्मण का पुत्र) रचित ग्रंथ व उसकी विषय-वस्तु इस प्रकार हैं:
रूप मण्डन- -मूर्ति कला, देवमूर्ति प्रकरण (रूपावतार)- मूर्ति निर्माण एवं प्रतिमा स्थापना, वास्तुमण्डन-वास्तुकला, वास्तुसार-दुर्ग, भवन, नगर निर्माण, राजप्रासाद, कोदण्ड मण्डन-धनुर्विद्या, शाकुन मण्डन- शगुन अपशगुन, वैद्य मण्डन-व्याधियां व निदान, प्रासाद मंडन-देवालय निर्माणकला, राजवल्लभ मंडन-सामान्य नागरिकों के आवासीय गृहों से लेकर राजप्रासाद एवं नगर रचना का विस्तृत वर्णन है। मण्डन के भाई नाथा ने वास्तु मंजरी की रचना की। संगीताचार्य श्री सारंग व्यास कुंभा के संगीत गुरु थे।
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महाराणा कुंभा का विद्यानुराग
कुम्भा न केवल वीर, युद्धकौशल में निपुण तथा कला प्रेमी था वरन् एक विद्वान तथा विद्यानुरागी भी था। उसके दरबार कई विद्वान आश्रय पाते थे। एकलिंगमाहात्म्य से विदित होता है कि वह वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, राजनीति और साहित्य में बड़ा निपुण था।
संगीतराज, संगीतमीमांसा एवं सूडप्रबन्ध इसके द्वारा रचित संगीत के ग्रन्थ थे। ‘संगीतराज’ के पांच भाग- पाठरत्नकोश, गीतरत्नकोश, वाद्यरत्नकोश, नृत्यरत्नकोश और रसरत्नकोश हैं। ऐसी मान्यता है कि कुम्भा ने चण्डीशतक की व्याख्या, गीतगोविन्द की टीका रसिकप्रिया और संगीतरत्नाकर की टीका लिखी थी।
महाराणा को महाराष्ट्री, कर्णाटी और मेवाड़ी भाषा लिखने का अच्छा अभ्यास था जो उसके द्वारा रचित चार नाटकों से प्रमाणित है। कुम्भा के अन्य प्रमुख ग्रंथ- कामराज रतिसार (7 अंग), सुधा प्रबन्ध रसिक प्रिया का पूरक ग्रंथ, राजवर्णन- एकलिंग माहात्म्य का प्रारंभिक भाग, – संगीतक्रम दीपिका, नवीन गीतगोविन्द वाद्य प्रबन्ध, संगीत सुधा, हरिवार्तिक आदि हैं। उसकी उपाधि अभिनव भारताचार्य (संगीत कला में निपुण) से सिद्ध है कि वह स्वयं महान् संगीतकार था। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के अनुसार वह वीणा बजाने में निपुण था।
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राणा कुंभा के दरबारी साहित्यकार FAQ
Ans – कृष्ण भट्ट
Ans – मण्डन के पुत्र गोविन्द ने उद्धारधोरणी, कलानिधि तथा द्वारदीपिका नामक ग्रन्थों की रचना की थी.
Ans – कुम्भा की पुत्री रमाबाई को ‘वागीश्वरी’ कहा गया है.
Ans – हीरानन्द मुनि को कुम्भा अपना गुरु मानते थे.
Ans – कवि अत्रि और महेश कीर्तिस्तम्भ की प्रशस्ति के रचयिता थे.
Ans – मण्डन ने देवमूर्ति प्रकरण, प्रासाद मण्डन, राजवल्लभ (भूपतिवल्लभ), रूपमण्डन, वास्तुमण्डन, वास्तुशास्त्र व वास्तुकार आदि पुस्तकों की रचना की.
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