आबू का परमार राजवंश | आबू के परमारों का मूल पुरुष धूमराज के नाम से विख्यात है, परन्तु इनकी वंशावली धूमराज के वंशज उत्पलराज से आरंभ होती है
आबू का परमार राजवंश
आबू के परमारों का मूल पुरुष धूमराज के नाम से विख्यात है, परन्तु इनकी वंशावली धूमराज के वंशज उत्पलराज से आरंभ होती है। आबू के परमारों की राजधानी चन्द्रावती थी। सिंधराज परमार एक प्रतापी शासक हुआ, जो ‘मरुमण्डल का महाराजा’ कहलाता था। 1002 ई. के दान पात्र से पता चलता है कि आबू पर धरणीवराह ने पुनःअधिकार कर लिया।
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धन्धुक परमार
धन्धुक परमार एवं भीमदेव सोलंकी के मध्य संघर्ष हुआ तो भीमदेव सोलंकी के दण्डपति विमलशाह ने दोनों में मेल करवाया। भीमदेव ने विमलशाह को आबू का दण्डपति नियुक्त किया। विमलशाह ने 1031 ई. में देलवाड़ा में भगवान आदिनाथ (विमलशाही मंदिर) का भव्य मंदिर बनवाया। धंधुक की विधवा पुत्री ने बसंतगढ़ में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। धारावर्ष परमार
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धारावर्ष परमार
आबू के परामरों में बड़ा प्रसिद्ध शासक हुआ। उसने 60 वर्ष तक शासन किया। घारावर्ष एक ही बाण से तीन-तीन भैसों को बेध डालता था। इस उल्लेख का साक्षी अचलेश्वर छिद्रित तीन भैंसे है। धारावर्ष के छोटे भाई प्रहलादन ने पालनपुर नामक नगर बसाया तथा ‘पार्थ पराक्रम व्यायोग’ नामक नाटक की रचना की। धारावर्ष के कवि सोमेश्वर ने ‘कीर्ति कौमुदी’ की रचना की।
धारावर्ष के पुत्र सोमसिंह परमार का संघर्ष सोलंकियों के साथ हुआ। सोमसिंह के मंत्री तेजपाल ने देलवाड़ा में भगवान नेमीनाथ का मंदिर बनवाया जिसे लूणवशाही मंदिर या वास्तुपाल-तेजपाल मंदिर कहते हैं। 1311 ई. के आसपास जालौर के चौहान शासक राव लूम्बा ने परमारों से चन्द्रावती छीन ली। यहीं से आबू के परमारों के शासन का अंत हुआ।
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आबू का परमार राजवंश FAQ
Ans – आबू के परमारों का मूल पुरुष धूमराज के नाम से विख्यात है.
Ans – आबू के परमारों की राजधानी चन्द्रावती थी.
Ans – ‘मरुमण्डल का महाराजा’ के रूप में सिन्धराज परमार को जाना जाता है.
Ans – आबू के परमारों के शासन का अंत 1311 ई. को हुआ था.
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