वाकाटक राजवंश | Vakataka Dynasty | वाकाटक राजवंश की स्थापना 255 ई. के लगभग विन्ध्यशक्ति नामक व्यक्ति ने किया था. इसके पूर्वज सातवाहनों के अधीन बरार के शासक थे
वाकाटक राजवंश | Vakataka Dynasty
वाकाटक राजवंश की स्थापना 255 ई. के लगभग विन्ध्यशक्ति नामक व्यक्ति ने किया था. इसके पूर्वज सातवाहनों के अधीन बरार के शासक थे. विन्ध्यशक्ति के पश्चात् उसका पुत्र प्रवरसेन प्रथम शासक हुआ था. वाकाटक वंश का यह अकेला शासक था जिसने सम्राट की उपाधि धारण की थी. पुराणों से पता चलता है की इसने चार अश्वमेघ यज्ञ करवाए थे.
प्रवरसेन के पश्चात् वाकाटक साम्राज्य दो शाखाओं में विभक्त हो गया था :- प्रधान शाखा तथा बसीय शाखा | दोनों शाखाओं ने समान्तर रूप से शासन किया था.
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प्रधान शाखा
प्रधान शाखा के प्रमुख शासक रुद्रसेन प्रथम, प्रभावती गुप्ता का संरक्षण काल, प्रवरसेन द्वितीय, नरेन्द्र सेन, पृथ्वीसेन द्वितीय थे.
गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से करवाया था. वाकाटकों का राज्य गुप्त व शक राज्य के मध्य स्थित था. राज्यों पर विजय प्राप्त करने के लिए चन्द्रगुप्त 2 ने इस संबंध को स्थापित किया था. विवाह के कुछ समय बाद रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई थी. चूँकि उसके दोनों पुत्र दिवाकर सेन व दामोदर सेन अवयस्क थे अतः प्रभाविगुप्ता ने शासन संभाला था. यह काल वाकाटक व गुप्त साम्राज्य के संबंध का स्वर्ण काल रहा था.
प्रभाविगुप्ता के संरक्षण काल के बाद उसका कनिष्ठ पुत्र दामोदर सेन प्रवरसेन द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा था. पृथ्वीसेन 2 वाकाटकों की प्रधान शाखा का अंतिम शासक था.
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बसीम शाखा
वाकाटक वंश की इस शाखा की स्थापना 330 ई. में सम्राट प्रवरसेन के छोटे पुत्र सर्वसेन ने की थी. उसने वत्सगुलम नामक स्थान पर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी. वत्सगुलम महाराष्ट्र के अकोला जिले के वर्तमान बसीम में स्थित था. बसीम शाखा के प्रमुख राजा निम्न थे : – सर्वसेन, विन्ध्यशक्ति 2, प्रवरसेन 2, हरिषेण.
हरिषेण बसीं शाखा का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था. यह वाकाटक वंश का अंतिम ज्ञात शासक था. वाकाटक वंश के राजा प्रवरसेन 2 ने मराठी प्राकृतकाव्य सेतुबंध की रचना की थी. सर्वसेन ने हरिविजय नामक प्राकृतकाव्य ग्रन्थ लिखा था. संस्कृत की वैदर्भी शैली का विकास वाकाटक नरेशों के दरबार में हुआ था.
कुछ विद्वानों का मत है की चन्द्रगुप्त द्वितीय के राजकवि कालिदास ने कुछ समय के लिए प्रवरसेन की राजसभा में निवास किया था. वाहन उन्होंने उसके सेतुबंध का संशोधन किया तथा वैदर्भी शैली में अपना काव्य मेघदूत लिखा था.
वाकाटक नरेश ब्राह्मण धर्म के अनुनायी थे. वे शिव तथा विष्णु के उपासक थे. वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन 2 के सामंत व्यघ्रादेव ने नचना के मंदिर का निर्माण करवाया था. अजंता की 16 वी व 17 वी गुहा विहार 19 वे गुहा चैत्य का निर्माण वाकाटकों के शासनकाल में हुआ था.
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वाकाटक राजवंश FAQ
Ans वाकाटक राजवंश की स्थापना 255 ई. में हुई थी.
Ans वाकाटक राजवंश की स्थापना विन्ध्यशक्ति ने की थी.
Ans विन्ध्यशक्ति का उतराधिकारी उसका पुत्र प्रवरसेन प्रथम था.
Ans प्रवरसेन प्रथम ने सम्राट की उपाधि धारण की थी.
Ans प्रवरसेन के पश्चात् वाकाटक साम्राज्य 2 शाखाओं में विभक्त हो गया था.
Ans वाकाटक साम्राज्य शाखाएँ निम्न थी :- प्रधान शाखा तथा बसीय शाखा.
Ans रुद्रसेन द्वितीय का विवाह गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ था.
Ans वाकाटकों का राज्य गुप्त व शक राज्य के मध्य स्थित था.
Ans रुद्रसेन द्वितीय के पुत्र दिवाकर सेन व दामोदर सेन थे.
Ans पृथ्वीसेन 2 वाकाटकों की प्रधान शाखा का अंतिम शासक था.
Ans वाकाटक वंश की बसीम शाखा की स्थापना 330 ई. में हुई थी.
Ans वाकाटक वंश की बसीम शाखा की स्थापना सम्राट प्रवरसेन के छोटे पुत्र सर्वसेन ने की थी.
Ans बसीम शाखा के प्रमुख राजा निम्न थे : – सर्वसेन, विन्ध्यशक्ति 2, प्रवरसेन 2, हरिषेण.
Ans वाकाटक वंश का अंतिम ज्ञात शासक हरिषेण था.
Ans वाकाटक नरेश ब्राह्मण धर्म के अनुनायी थे.
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