वत्सराज : गुर्जर-प्रतिहार वंश | देवराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वत्सराज सिंहासन पर बैठा था. इसने संभवतः 783 ई. से 795 ई. तक शासन किया था. यह अपने समय का शक्तिशाली राजा सिद्ध हुआ था
वत्सराज : गुर्जर-प्रतिहार वंश
देवराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वत्सराज सिंहासन पर बैठा था. इसने संभवतः 783 ई. से 795 ई. तक शासन किया था. यह अपने समय का शक्तिशाली राजा सिद्ध हुआ था. अपने अनेक युद्धों के परिणामस्वरूप इसने आमने वंश को अभूतपूर्व गौरव प्रदन किया था. इसने अपने पराक्रम से गौड़ व बंगाल के पाल शासकों को पराजित किया था.
पाल शासकों से युद्ध :- जिस समय प्रतिहार वंश उत्तरी भारत में अपनी सार्वभौमता की नींव रख रहा था, उस समय बंगाल के पाल वंश के शासक भी चक्रवृति बनने के सपने देख रहे थे. इन दोनों साम्राज्यवादी वंशों के बीच कान्यकुब्ज का निर्बल आयुध वंश था. प्रतिहार व पाल दोनों इस वंश को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेना चाहते थे. त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरुआत गुर्जर-प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी. वत्सराज ने पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया था. इसने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया था. इसलिए वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है.
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मध्य राजपुताना पर अधिकार :- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार वत्सराज ने भंडी जाति को पराजित करके उसका राज्य छीन लिया था. यह नीति अपनी शक्तिशाली गजसेना के कारण दुर्जेय समझी जाती है. भंडी जाति का समीकरण भट्टी जाति से किया जाना चाहिए. इस जाति का उल्लेख जोधपुर अभिलेख में हुआ है. यह मध्य राजपुताना के मध्य में रहती थी. अतः उसे पराजित करके वत्सराज ने उस स्थान पर अपना अधिकार कसर लिया था.
राष्ट्रकुटों से युद्ध :- इस समय दक्षिणी भारत के एक बड़े भूखंड पर राष्ट्रकूट वंश का शासन था. इसका समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था. इसने अवन्ती नरेश वत्सराज पर आक्रमण किया था. राधनपुर व वनी-डिंडोरी अभिलेखों से पता चलता है की इस युद्ध में वत्सराज की पराजय हुई व उसे मरुस्थल में शरण लेनी पड़ी थी. इसके साथ ही ध्रुव ने पाल नरेश धर्मपाल पर आक्रमण किया व उसे भी पराजित कर दिया था.
संजन व सूरत अभिलेखों का कथन है की यह युद्ध गंगा व यमुना के दोआब में हुआ था व इस युद्ध में ध्रुव की विजय हुई थी, यही तथ्य बडौदा अभिलेख से भी प्रकट होता है. इस विजय के उपलक्ष्य में राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने राष्ट्रकूट कुलचिंह में गंगा व यमुना के चिन्हों को शामिल किया था. ध्रुव के चले जाने की बाद धर्मपाल ने इन्द्रायुध को हटाकर उसके स्थान पर चक्रायुध को कन्नौज का शासक बनाया था.
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वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ था. इसे भी “नागवलोक” कहते है. यह एक महत्वकांक्षी शासक सिद्ध हुआ था.
वत्सराज : गुर्जर-प्रतिहार वंश FAQ
Ans देवराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वत्सराज सिंहासन पर बैठा था.
Ans वत्सराज ने संभवतः 783 ई. से 795 ई. तक शासन किया था.
Ans जिस समय प्रतिहार वंश उत्तरी भारत में अपनी सार्वभौमता की नींव रख रहा था, उस समय बंगाल के पाल वंश का शासन था.
Ans पाल तथा प्रतिहार साम्राज्यवादी वंशों के बीच कान्यकुब्ज का निर्बल आयुध वंश था.
Ans त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरुआत गुर्जर-प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी.
Ans वत्सराज ने पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया था.
Ans वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया था.
Ans वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है.
Ans ग्वालियर अभिलेख के अनुसार वत्सराज ने भंडी जाति को पराजित करके उसका राज्य छीन लिया था.
Ans भंडी जाति का समीकरण भट्टी जाति से किया जाना चाहिए.
Ans वत्सराज का समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव था.
Ans विजय के उपलक्ष्य में राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने राष्ट्रकूट कुलचिंह में गंगा व यमुना के चिन्हों को शामिल किया था.
Ans वत्सराज का उत्तराधिकारी नागभट्ट द्वितीय था.
Ans नागभट्ट द्वितीय की माता का नाम रानी सुन्दरदेवी था.
Ans नागभट्ट द्वितीय को “नागवलोक” के नाम से भी जाना जाता था.
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