विक्रम संवत | भारत में हिन्दू पंचांग विक्रम संवत् पर आधारित है। विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ई. पू. में हुआ था। विक्रमी संवत् की गणना चंद्र के आधार पर की जाती है
विक्रम संवत
भारत में हिन्दू पंचांग विक्रम संवत् पर आधारित है। विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ई. पू. में हुआ था। इस संवत् के वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ला एकम् से होता है एवं समाप्ति फाल्गुन अमावस्या को होती है। यह वर्षग्रिगोरियन कलैण्डर वर्ष से 57 वर्ष आगे रहता है।प्रत्येक वर्ष मार्च माह में विक्रम संवत् एवं शक संवत् दोनों की शुरुआत होती है।
अतः मार्च में विक्रम संवत् एवं शक संवत् के दो वर्षों की कुछ अवधि आती है। ग्रिगेरियन कैलेण्डर और हिन्दू राष्ट्रीय पंचांग (नव संवत्) की तिथियों में प्रायः 15 दिनों का अन्तर रहता है। नव वर्ष भी प्रायः मार्च में ही पड़ता है। लेकिन जब कभी हिन्दू वर्ष 12 महिने की बजाय 13 महिने का होता है तो यह अप्रैल से प्रारंभ होता है।
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भारतीय ज्योतिष शास्त्र चंद्रगणनापर आधारित है। विक्रमी संवत् की गणना भी इसी आधार पर की जाती है। इसमें चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्ष (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष) का एक मास होता है। प्रथम पक्ष अमांत व द्वितीय पक्ष पूर्णिमांत कहलाता है।
कृष्णपक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा तक प्रत्येक चंद्रमास में साढ़े 29 दिन होते है। एक वर्ष 354 दिन का होता है। पृथ्वी द्वारा सूर्य का परिभ्रमण 365 दिन में करने के कारण प्रत्येक वर्ष में 11 दिन 3 घड़ी और 48 पल का अंतर आ जाता है। यह अंतर तीन वर्ष में लगभग एक मास का हो जाता है। कालगणना में अंतर को पूर्ण करने के लिए 3 वर्ष में एक अधिमास की व्यवस्था है। प्रत्येक तीसरे वर्ष चंद्रमासों में एक मास की वृद्धि हो जाती है जिस अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते है।

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विक्रम संवत FAQ
Ans – भारत में हिन्दू पंचांग विक्रम संवत् पर आधारित है।
Ans – विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ई. पू. में हुआ था।
Ans – विक्रम संवत ग्रिगोरियन कलैण्डर से 57 वर्ष आगे रहता है।
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