मालपुरा (टोंक) का युद्ध | मालपुरा की लड़ाई मार्च, 1800 में जयपुर और सिंधिया के बीच उत्पन्न संकट के कारण हुई। धन के दबाव को लेकर राजपूतों एवं मराठों में मतभेद गहरा गया था
मालपुरा (टोंक) का युद्ध
मालपुरा की लड़ाई मार्च, 1800 में जयपुर और सिंधिया के बीच उत्पन्न संकट के कारण हुई। धन के दबाव को लेकर राजपूतों एवं मराठों में मतभेद गहरा गया था। धन को लेकर मराठा सरदारों दौलतराव सिंधिया एवं होल्कर के मध्य मतभेद उत्पन्न हो गया था। जयपुर के सवाई प्रतापसिंह ने अपने शत्रु के आंतरिक संघर्ष का फायदा उठाने का प्रयास किया जिसके कारण मालपुरा का संघर्ष हुआ।
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मार्च, 1800 में प्रतापसिंह ने खुले तौर पर घन की मांग को खारिज कर दिया जो 1791 ई की संधि से तय किया गया था। सवाई प्रतापसिंह ने पूरी तैयारी के साथ अपनी सेना का कैम्प सांगानेर में लगाया तो दूसरी ओर लकवा दादा ने अपनी टुकड़ी मालपुरा में तैनात की। उसकी सेना की दो ब्रिगेड डी बोइन (De Boign’s) तथा 6 बटालियन पोल्मन पोमन (Pohiman) द्वारा निर्देशित की गई।
6 बटालियन होल्कर के पास थी जिसमें 16000 सेना थी। जयपुर की सेना में 18 बटालियन भी, रोहिल्ला एवं जोधपुर के सवाईसिंह के पास 27,000 सेना थी। मराठा सेना सोहाद्रा नदी तट पर हिण्डोली के निकट आई। 16 अप्रैल 1800 को जयपुर सेना ने उस पर धावा बोला, जिसे मालपुरा (टोंक) युद्ध के नाम से जाना जाता है। जिसमें जयपुर पक्ष की जीत हुई।
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मालपुरा (टोंक) का युद्ध FAQ
Ans – मालपुरा की लड़ाई मार्च, 1800 में जयपुर और सिंधिया के बीच उत्पन्न संकट के कारण हुई थी.
Ans – मालपुरा की लड़ाई 16 अप्रैल 1800 ई. को हुई थी.
Ans – मालपुरा की लड़ाई जयपुर के शासक प्रतापसिंह व मराठों के मध्य हुई थी.
Ans – मालपुरा की लड़ाई में जयपुर पक्ष की विजय हुई थी.
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