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    Home»भारत का इतिहास»मध्यकालीन भारत»मध्यकालीन आर्थिक स्थिति

    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति

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    By Kerry on 03/12/2022 मध्यकालीन भारत, राजस्थान का इतिहास
    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति

    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति | आठवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक राजस्थान के विभिन्न भू-भागों पर चौहानों का शासन रहा। प्राचीन राजस्थान में सात प्रकार के चांदी के सिक्के चलते थे

    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति

    आठवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक राजस्थान के विभिन्न भू-भागों पर चौहानों का शासन रहा।चरमोत्कर्ष के इस काल में चौहानों का राज्य अजमेर और दिल्ली के अतिरिक्त आधुनिक पंजाब के अम्बाला जिले तक फैला हुआ था। लगभग आधा भू-भाग रेगिस्तान था जबकि शेष भूमि यमुना, चम्बल और बनास द्वारा सींची जाती थी। सरस्वती नदी को घाटी में भूमि उपजाऊ थी। परिणामस्वरूप जहां रेगिस्तानी भू-भाग कम आबादी वाला प्रदेश बना रहा, वहीं नदी की घाटी में घनी आबादी वाले कस्बे और नगर बस गए। आधुनिक अजमेर के अतिरिक्त नाडोल, रणथम्भौर, जालौर और सांभर चौहानों की राजधानी होने के साथ-साथ व्यापारिक नगर बने हुए थे।

    भीनमाल, आबू आदि नगर धार्मिक स्थल होने के अलावा महत्वपूर्ण सैनिक केन्द्र भी बन गए थे। वर्तमान मारवाड़ और सपादलक्ष राज्य की सीमा पर नागौर एक व्यापारिक नगर था। इन व्यापारिक नगरों के संबंध में समकालीन काव्यों में अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है जिसकी प्रामाणिकता को जांचने के लिए समकालीन विदेशी यात्रियों के संस्मरणों को खोजना पड़ता है। सातवीं शताब्दी में भारत की यात्रा करने वाला चीनी यात्री ह्वेनसांग अपने संस्मरण में लिखता है कि राजस्थान में सकड़ी और अविकसित पगडण्डियाँ थी जिनका उपयोग करते हुए निर्धन मछुए, कसाई और हरिजन अपनी जीविका कठिनाई से कमाते थे। एक तरफ यह मजदूर वर्ग शहर की चारदीवारी के बाहर पद-दलित जीवन व्यतीत करता था तो दूसरी और नगरों में बड़े-बड़े भव्य महल बने हुए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि बहुसंख्यक प्रजा के सुख-दुख की राजपूत राजा अधिक परवाह नहीं करते थे।

    अकबर महान् के शासन काल में आइने-अकबरी’ लिखते समय अबुलफजल ने मालूम किया था कि प्राचीन काल में चौहान राज्य में ज्वार, बाजरा और गेहूं की फसल गर्मियों में होती थी कुरुक्षेत्र-दिल्ली के आस-पास के प्रदेश में गेहूं, गन्ना, चावल, राजमाँ उत्पन्न होता था। सपादलक्ष के चौहान राजाओं को साँभर झील के नमक के उत्पादन से काफी लाभ होता था। इसके अलावा तांबा, जस्ता और इमारती पत्थर राजस्थान की विशेष देन थी। मारवाड़ और बीकानेर के रेगिस्तानी भू-भाग में ऊन, घी, दूध और दूध से बने हुए पदार्थ उपलब्ध होते थे। स्पष्ट है कि पूर्वी राजस्थान में पशुपालन एक प्रमुख व्यवसाय था जिसके कारण चारागाहों को विशेष महत्व दिया जाता था।

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    शाकम्भरी के शासक विग्रहराज द्वितीय, नाडौल के शासक कल्हण, जालौर के शासक उदयसिंह और हस्तिकुण्ड के शासक माम-माता के शासनकाल में गेहूं, तेल, पान, नमक और घोड़े का व्यापार अति उन्नत था। इसका आयात अधिकांशत: उत्तरपथ से किया जाता था। गुजरात के साथ प्राचीन राजस्थान के निवासियों का दास व्यापार था। प्राचीन राजस्थान के शासक व्यापारियों को अधिक से अधिक सुविधाएं देते थे। ये व्यापारी आवश्यकता की वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। लेकिन जब यहां के शासक निर्बल होने लगे तो इन व्यापारियों ने पैसा कमाने के लिए स्त्री-व्यापार को भी प्रारंभ कर दिया। सम्भवतः विदेशों के साथ सामुद्रिक मार्ग से सम्पर्क स्थापित करने के कारण हो इन लोगों ये यह व्यापार अपना लिया।

    राजस्थान के निवासी नौकरी पेशा भी थे। सैनिक, लेखक, पुरोहित, अध्यापक, ज्योतिषि, संगतराश, भाट, शिकारी और कसाई सभी नौकरी पेशा थे। ‘कान्हड़दे प्रबन्ध’ नामक ग्रंथ के अनुसार अकेले जालौर शहर में 4 उच्च जातियों के लोग निवास करते थे जो 18 वर्णों के थे। लोगों के व्यवसायों के अनुसार श्रेणिया बनी हुई थी। समकालीन इतिहास में 18 प्रकार की श्रेणियों का वर्णन है जिनमें ढाकू, लूटेरे और चोरों की श्रेणियां बनी हुई थी। इन लोगों को साहसी श्रेणी का व्यक्ति कहा जाता था।

    राजस्थान में व्यापारियों में ब्याज लेने की परम्परा भी प्रचलित थी। 1262 ई. के भीनमाल शिलालेखों और 1323 वि.सं के जालौर शिलालेख में ब्याज की दरों का वर्णन है। ऐसा प्रतीत होता है कि व्याज किस्त और नकद दोनों में ही लिया जाता था। ब्याज का वर्णन यह बतलाता है कि प्राचीन राजस्थान का वाणिज्य विकसित था।

    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति
    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति

    प्राचीन राजस्थान में सात प्रकार के चांदी के सिक्के चलते थे। सर्वाधिक लोकप्रिय सिक्का हामा था। इसके अतिरिक्त कुछ और सिक्के थे जिनमें टंका, जीतल और रूपका भी काफी प्रचलित थे। अधिकांश सिक्के चांदी के थे परन्तु सोना अथवा किसी दूसरी धातु के (सम्भवतः तांबा और पीतल के सिक्के भी ढाल लिए जाते थे।

    जहां तक नाप-तौल का संबंध है, समकालीन शिलालेखों के अनुसार चार पावला से एक पाली बनती थी, चार पाली का एक मण होता था। 5 मण की एक साई होती थी, मण का एक पदक होता था, 4 पदक की एक हण्डी होती थी और 4 हण्डी की मानी होती थी। सम्भवतः यही नाप-तौल राजस्थान के पड़ौसी प्रदेशों में भी प्रचलित थे।

    वि.सं. 1228 के घाँद शिलालेख के अनुसार एक मकान 16 ग्राम में खरीदा जा सकता था। एक ग्राम में 8 पाइली गेहूँ, एक पाइली मूँग, 3/, पाइली चावल, 6 पाइली अच्छा गेहूं खरीदा जा सकता था। डॉ. दशरथ शर्मा ने अपने अनुसंधान के ग्रंथ में आवश्यकता की वस्तुओं के जो मूल्य दिये हैं, उनका सल्तनत युग के इतिहासकार बरनी के ‘तारीखे-फीरोजशाही’ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह कहा जा सकता है कि चौदहवीं शताब्दी में राजस्थान में वस्तुओं के मूल्य अधिक नहीं थे। अलाउद्दीन खिलजी की मध्यकालीन इतिहास में प्रशंसा की गई है, परन्तु राजस्थान के राजाओं ने अलाउद्दीन की तरह कष्ट उठाए बिना ही इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था को सस्ता और सुलभ बना रखा था।

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    सपादलक्ष के राजा सम्पत्तिशाली थे। उनकी आमदनी का अधिकांश भाग सांभर झील के नमक से होता था। उन लोगों ने दिग्विजय के कार्यक्रम के साथ-साथ जन-साधारण को सुखी और समृद्धिशाली बनाए रखने के लिए अन्न के उत्पादन और वितरण के संतुलन को बनाए रखा। यही कारण है कि अनाज 2 व 4 जीतल प्रति मन की दर से प्राप्त हुआ करता था। सामान्य व्यक्तियों को अन्न का अभाव महसूस नहीं होता था। उनके सम्मुख अधिक जनसंख्या की समस्या भी नहीं थी। छः शताब्दी के लम्बे काल में केवल दो चार अकाल पड़ा था जब लोगों को अन्न के स्थान पर मरे हुए जानवरों का गोश्त अथवा इन्सानी गोश्त खाने को बाध्य होना पड़ा था। उस समय भी जगाडू के व्यापारियों ने राजाओं को सहायता की जिसकी वजह से राजस्थान में भारत के दूसरे भागों की तरह लोगों को अकाल से पीड़ित नहीं होना पड़ा।

    कहने का तात्पर्य यह है कि पूर्व मध्यकालीन राजस्थान के राजपूत राजाओं ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था स्थापित कर रखी थी जिसमें सामान्य व्यक्तियों, व्यापारियों और राजाओं का एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। सम्भवतः यही कारण है कि संकटकालीन परिस्थितियों में भी राजस्थान को अर्थाभाव का सामना नहीं करना पड़ा। मुसलमानों ने इस प्रदेश से जितना धन लूटा था, उसका वर्णन फारसी की तवारीखों तथा उनके आधार पर लिखे हुए आधुनिक ऐतिहासिक ग्रंथों में मिल जाता है। उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं है कि इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था धर्म-प्रेरित थी, इसीलिए यहां के मंदिरों में सम्पत्ति का संचय सुरक्षित माना जाता है।

    यह भी देखे :- मध्यकालीन स्त्रियों की दशा

    मध्यकालीन आर्थिक स्थिति FAQ

    Q 1. आठवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक राजस्थान के विभिन्न भू-भागों पर किसका शासन रहा था?

    Ans – आठवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक राजस्थान के विभिन्न भू-भागों पर चौहानों का शासन रहा था.

    Q 2. प्राचीन राजस्थान में कितने प्रकार के चांदी के सिक्के चलते थे?

    Ans – प्राचीन राजस्थान में सात प्रकार के चांदी के सिक्के चलते थे.

    Q 3. मध्यकाल में सर्वाधिक लोकप्रिय सिक्का कौनसा था?

    Ans – मध्यकाल में सर्वाधिक लोकप्रिय सिक्का हामा था.

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